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________________ अन्नत्थ सूत्र अतः कायोत्सर्ग करते समय भी मुझे यह क्रिया कराने की छूट रखनी पडती है । ऐसा दिन कब आयेगा, जब कयोत्सर्ग करके कर्म का नाशकर मैं शरीर का संग छोड़कर अशरीरी बनकर आत्मिक आनन्द की अनुभूति करूँगा ।' १७५ २. आगंतुक अल्प निमित्त से होनेवाले आगार : खासिएणं छीएणं जंभाइएणं : खांसी आने से, छींक आने से, जंभाई (उबासी) आने से । खांसी, छींक या उबासी वायु आदि की विषमता के कारण कभी कभार ही होते हैं। इसलिए ये अल्प निमित्ताधीन हैं और आगंतुक हैं । खांसी आना, अपनी इच्छा या प्रयत्न पर निर्भर नहीं है । जब अंदर से खांसी उत्पन्न होती है, तब उसे रोकना संभव नहीं है ऐसा ही छींकने के बारे में है । छींक भी आगंतुक है एवं हम उसे रोक नहीं सकते । शरीर में अल्प वायु का क्षोभ होने के कारण उबासी आती है । उसे रोकने से भी असमाधि होने की संभावना रहती है । इसलिए उसका भी अपवाद रखा है । इस पद का उच्चारण करते हुए साधक सोचता है, ‘मैं श्वासोच्छ्वास को तो नहीं रोक सकता; पर धातु के साम्य को भी नहीं कर पाता, अतः ये सब विकार उत्पन्न होते हैं और मुझ से ऐसी चेष्टाएं हो जाती हैं । कब ऐसा दिन आयेगा कि मैं काया आदि की स्थिरता प्राप्त कर, आत्मभाव में लीन बनूँगा ।' ३. आगंतुक बहु निमित्त से उद्भव होनेवाले आगार : उड्डणं वाय- निसग्गेणं भमलीए पित्त-मुच्छाए : डकार आने से, वायु का संचार होने से, चक्कर आने से, पित्त प्रकोप से होनेवाली मूर्च्छा द्वारा,
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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