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सूत्र संवेदना
विशेषार्थ :
अन्नत्थ : अन्यत्र, इसके अलावा;
यह नैपातिक पद है । जब किसी भी वस्तु का अपवाद करना हो अथवा उसे मुख्य वस्तु से अलग करना हो, तब इसका उपयोग होता है, जैसे कि - मैं तेरा काम रात-दिन करूंगा, निद्रा समय के अलावा । यह पद 'उससिएणं' से 'एवमाइएहिं आगारेहि' तक सब पदों के साथ जोड़ना है ।
जैसे कि, उच्छ्वास के अलावा, निःश्वास के अलावा आदि । ___ इस सूत्र में कहे गए आगारों का पांच विभागों में वर्गीकरण हो सकता
१. सहज होनेवाले आगार २. आगंतुक अल्प निमित्त आगार ३. आगंतुक बहु निमित्त आगार ४. निश्चित होनेवाले सूक्ष्म आगार
५. बाह्य निमित्तों से होनेवाले आगार । १. सहज होनेवाले आगार :
ऊससिएणं नीससिएणं : ऊंची श्वास लेने से, नीची श्वास छोड़ने से ।
मुख या नासिका द्वारा अंदर ली जानेवाली श्वास, उच्छ्वास है एवं बाहर निकलनेवाली श्वास निःश्वास है । यह क्रिया सहज है । शरीर में जब तक प्राण हैं, तब तक यह क्रिया निरंतर चलती रहती है और यदि लंबे समय तक उसे रोकें तो मृत्यु होती है । प्राणायाम द्वारा थोड़ी देर के लिए यह क्रिया रोकी जा सकती है, किन्तु अधिक समय तक रोकने से प्राण निकल जाते हैं, इसलिए कायोत्सर्ग करते हुए उच्छ्वास एवं निःश्वास की छूट रखते हैं । इस पद का उच्चारण करते हुए साधक सोचता है कि, "हे प्रभु ! कर्म के उदय से ऐसा शरीर मिला है कि एक क्षण भी श्वासोच्छ्वास की क्रिया किए बिना मैं नहीं रह सकता ।