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सूत्र संवेदना
पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए : पापकर्मों का नाश करने के लिए । __पापकर्मों का सम्पूर्ण नाश करने के लिए कायोत्सर्ग करना चाहिए । इस जगत् में कार्मण वर्गणा के पुद्गल समूह दबा-दबा कर भरे हुए हैं । आत्मा में जब राग-द्वेष की स्निग्धता (चिकनाइ) उत्पन्न होती है, तब वे कार्मण वर्गणा नामक पुद्गल समूह आत्मा से जुड़ते हैं । जीव के साथ संबंधित हुई इन कार्मण वर्गणाओं को कर्म कहते हैं । निश्चयनय से तो आत्मगुण के अवरोधक, आत्मा के शुद्ध स्वभाव को आवृत करनेवाले सब कर्मों को पापकर्म ही कहा जाता है । जब कि, व्यवहार नय दुःख देनेवाले कर्मों को ही पापकर्म मानता है । ऐसे पापकर्मों के निर्घातन के लिए इस सूत्र द्वारा कायोत्सर्ग करना है ।
निर्घातन अर्थात् सम्पूर्ण नाश करने के लिए । घात करने की क्रिया को घातन कहते हैं । पाप घातन की यह क्रिया जब उत्कृष्टता से होती हो अर्थात् दुबारा पाप होने की कोई संभावना बाकी न रहती हो, आत्मा की उस स्थिती को निर्घातन कहते है ।
इस तरह, ऊपर बताए चारों करण (अध्यवसाय) द्वारा आत्मा विशिष्ट कोटि का कायोत्सर्ग करने के लिए उद्यत होती है । इस कायोत्सर्ग का मुख्य कार्य पापकर्मों का सर्वथा नाश करना है । इस पद द्वारा कायोत्सर्ग के प्रयोजन स्वरूप सूत्र का तीसरा, विभाग संपन्न होता है । ४. कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा :
कायोत्सर्ग के लिए सभी तैयारी करने के बाद अब अंत में कायोत्सर्ग करने के लिए कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा लेनी है । ठामि काउस्सग्गं : मैं कायोत्सर्ग करता हूँ । __ ये दो पद कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा दर्शाते हैं । कायोत्सर्ग = काया का त्याग अर्थात् व्यापारवाली काया का त्याग अर्थात् काया की चेष्टाओं या