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तस्स उत्तरी सूत्र
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आत्मा को दोषों का प्रायश्चित्तकरण एवं विशुद्धिकरण करने के लिए एक एक शल्य को आत्मा-निरीक्षण करके निकाल देना चाहिए । शल्य की खोज एवं दूर करने का उपाय ; .
मिथ्यात्व शल्य है कि नहीं, इसे जानने के लिए सोचना चाहिए कि 'क्या संसार एवं संसार के समस्त भाव असार हैं - अतत्त्व भूत हैं, ऐसा मुझे लगता है ? धर्म एवं धर्म का फलभूत मोक्ष ही सार है - वही तत्त्वभूत है, ऐसी तीव्र श्रद्धा मुझे है ? मुझे अनुकूलता के राग के प्रति तो राग नहीं है ? जिनेश्वर के किसी वचन के उपर मुझे अश्रद्धा या शंका तो नहीं है ? ऐसे प्रायश्चित्त के अलावा किसी और तरीके से मेरा पाप मिट जायेगा ऐसा, तो नहीं लगता है न ? __ यदि इसमे से किसी का भी जवाब विपरीत आए तो समझना चाहिए कि मिथ्यात्व शल्य अंतर की गहराई में पड़ा है । अभी भी संसार के किसी भाव में सुखकारकता का भ्रम है । यदि मिथ्यात्व शल्य निर्मूल हो जाए, तो संसारवर्ती एक भी भाव सारभूत न लगे । एक भी वस्तु आदरणीय न लगे। संभव हो तो संसार का त्याग हो और यदि संभव न हो तो भी संसार में आसक्ति तो नहीं ही रहती । मिथ्यात्व की उपस्थिति में ही राग के उपर राग होता है, बाकी तो राग विकृति लगता है एवं उसे निकालने का मन होता है।
इन शल्यों को निकालने के लिए शास्त्रों के आधार से संसार के वास्तविक स्वरूप का चिंतन करना चाहिए । सर्वज्ञ वीतराग की परम कृपा का अनुभव करना चाहिए । उन्होंने जो भाव-अहिंसा का मार्ग बताया है उससे ही मेरा कल्याण होगा । भगवान के वचन से विपरीत करने से रोकांतिक मेरा अहित ही होगा । ऐसा बार बार याद करते हुए भगवान के वचन पर दृढ़ श्रद्धा करनी चाहिए । सच्ची श्रद्धा से ही मिथ्यात्व शल्य निकलेगा एवं रागादि के प्रत्येक भावों का वास्तविक स्वरूप समझ में आएगा ।