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________________ संकलनकारिका का निवेदन 'पंचमकाल जिनबिंब जिनागम भवियण को आधारा' अच्छे काल में योग्य आत्माओं के पास मोक्ष पाने के अनेकों साधन होते हैं। परन्तु पांचवें आरे जैसे विषम काल में भव्य प्राणियों को तैरने के साधन मात्र जिन बिंब एवं जिनागम हैं। जिनागम इतने विस्तृत प्रमाण में हैं कि, उन्हें सर्वांगीण समझने की शक्ति सामान्य इन्सान की नहीं होती। इसलिए सामान्य मानव भी अपना आत्मकल्याण साध सके इस हेतु से आगमों के सार को ग्रहण करके पूर्व पुरुषों ने प्राकृत भाषा में अनेक सूत्रों की रचना की है। ये सूत्र अपेक्षा से छोटे एवं भावपूर्ण होने से सब कोई इन सूत्रों को पढ़कर अपना आत्मकल्याण साध सकते हैं। प्रमाण में छोटे होने पर भी इन एक-एक सूत्रों में मोक्ष साधना के रहस्य ठूसठूस के भरे हैं। एक-एक सूत्र में हेयभूत आश्रव के भावों का त्याग कराकर मोक्षमार्ग के लिए उपयोगी ऐसे संवरभाव को प्राप्त करवाने की एवं जड के प्रति प्रीति को तोड़कर समग्र जीवराशि के उपर वास्तविक मैत्री भाव पैदा करानेवाली अनुपम शक्ति देखने को मिलती है। अरिहंतादि उत्तम तत्त्वों का शरण, दुष्कृत गर्दा एवं सुकृत की अनुमोदना द्वारा कर्म के अशुभ अनुबंधों को तुड़वाकर उत्तरोत्तर गुणवृद्धि द्वारा मोक्ष तक ले जाने का अनुपम सामर्थ्य इन सूत्रों में भरा है। इन सूत्रों के माध्यम से ही आफतों में से उभरकर आत्मकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़नेवाले सुदर्शन, सेठ, अमरकुमार, सती श्रीमती आदि के अनेक प्रसंग शास्त्र में देखने को मिलते हैं। 'दगमट्टी' इतने छोटे पद का चिंतन करते हुए अपने किये हुए दुष्कृतों की आलोचना करते हुए अइमुत्ता मुनि को केवलज्ञान हुआ एवं 'उपशम, विवेक एवं संवर' - इन तीन पद की अनुप्रेक्षा करते-करते चिलातीपुत्र कषाय का त्याग करके, विवेक भाव को
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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