SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 171 ह।) स्वरूप उसका प्रथम भाग प्रकाशित हो रहा है। इसमें नमस्कार महामंत्र से सामाइय वयजुत्तो तक के ग्यारह सूत्रों का समावेश किया है एवं प्रत्येक सूत्र का विशद् विवेचन किया गया है। (आज सूत्र संवेदना भाग १ से ६ प्रकाशित हो चूके हैं एवं हिन्दी में भाग १ से ४ प्रकाशित हो रहे हैं। भाग ५-६ प्रकाशन अधीन हैं। अल्प समय में भाग १ से ७ हिन्दी में उपलब्ध बनाने की भावना है।) आराधक यदि प्रत्येक सूत्र को ठीक-ठीक समझकर तत्त्व संवेदन सहित प्रत्येक क्रिया करता जाए तो मोक्ष उससे अधिक भवों तक दूर नहीं रहे। शायद ऐसे आराधकों का वर्ग मर्यादित रहे, परन्तु आखिर तो मुमुक्षु जीवों को ध्यान में रखकर ही 'सूत्र संवेदना' पर लिखा गया है एवं लिखा जा रहा है। इसलिए इसके संबंध में अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं । सभी आराधकों के लिए अति उपकारक हो उस प्रकार इस पुस्तक का सर्जन करके साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी ने अनेक मुमुक्षु जीवों के लिए आराधना मार्ग स्पष्ट एवं सुलभ कर दिया है। उनकी इस मार्ग की अनुमोदना करने का मुझे इस प्रकार जो मौका मिला है, उसका मुझे आनंद है। इस ज्ञानधारा का सातत्य बना रहे एवं उसका लाभ लेकर अनेक जीव मिले हुए मनुष्य भव को उत्तम तरीके से उपयोग कर पाएँ वैसी प्रार्थना के साथ मैं विराम लेता हूँ। 'सुहास' ६४, जैननगर चन्द्रहास त्रिवेदी पालडी, अमदाबाद-३८०००७ ता. ३०-११-२००० - श्री चन्द्रहास त्रिवेदी गुजरात के एक अग्रगण्य लेखक हैं। जन्म से ब्राह्मण होते हुए भी आपने जैन दर्शन का विशद् अभ्यास किया है। दर्शन शास्त्र, सामाजिक परिस्थिति, जैनधर्म, काल्पनिक नवलकथा इत्यादि विभिन्न विषयों पर आपका वर्चस्व है। सूत्र संवेदना श्रेणी का परिशीलन करना आपका प्रिय विषय रहा है। - सं.
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy