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सूत्र संवेदना
विसल्ली-करणेणं, विशल्यी-करणेन
विशल्यी करण द्वारा विशेषार्थ : १. अनुसंधान दर्शक : तस्स : उसका
'उसका' अर्थात् पूर्व में इरियावहिया सूत्र में जिन अतिचारों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किया था, उन्हीं अतिचारों का । यह सूत्र इरियावही सूत्र का ही अनुसंधान या परिशिष्ट है । प्रतिक्रमण में इरियावही सूत्र में या इच्छामि ठामि सूत्र में 'मिच्छा मि दुक्कडं' पद द्वारा किये हुए प्रतिक्रमण का अनुसंधान ‘तस्स' पद बताता है । इसलिए इस पद के द्वारा दोनों सूत्रों की संलग्नता अर्थात् दो सूत्र के बीच का अनुसंधान स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाता है। इस पद से सूत्र का ‘अनुसंधान दर्शक' नामक पहला भाग संपन्न होता है । २. कायोत्सर्ग के उपाय : उत्तरीकरणेणं : उत्तरीकरण करने से
पहले करें, तो वह पूर्वकरण कहलाता है एवं बाद में करें, तो वह उत्तरकरण कहलाता है । उत्तरीकरण अर्थात् अनुत्तर का उत्तर करना अर्थात् आंशिक शुद्ध को संस्कार करके विशेष शुद्ध करना । इरियावही द्वारा पाप की शुद्धि होने के बावजूद अंतर में पाप के जो संस्कार पडे हों, उनका नाश 'करके व्रतादि को संपूर्ण शुद्ध करने की प्रक्रिया को 'उत्तरीकरण' कहा जाता है ।
गाड़ी, घर वगैरह टूट जाने पर जैसे उनकी पुनः मरम्मत की जाती है, वैसे ही मूलगुणों एवं उत्तरगुणों का खंडन या विराधना हुई हो, तो उनकी भी मरम्मत करना, वह उत्तरीकरण है ।