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________________ तस्स उत्तरी सूत्र . . १५५ मूल सूत्र: तस्स उत्तरी-करणेणं, पायच्छित्त-करणेणं, विसोही-करणेणं, विसल्ली-करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्घायणढाए, ठामि काउस्सग्गं ।। पद-६ संपदा-१ अक्षर-४९ १८. पडिक्कमण-संपदा तस्स उत्तरी-करणेणं १, पायच्छित्त-करणेणं २, विसोही-करणेणं ३, विसल्ली करणेणं ४, पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ५, ठामि काउस्सग्गं ६. ।।१।। अन्वय सहित संस्कृत छाया एवं शब्दार्थ : तस्स उत्तरी करणेणं, तस्य उत्तरी-करणेन, उसका (पूर्व में ऐर्यापथिकी विराधना की जो शुद्धि की उसका) उत्तरीकरण करने से पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउस्सग्गं पापानां कर्मणां निर्घातनार्थं कायोत्सर्गं तिष्ठामि । पापकर्मों का नाश करने के लिए मैं कायोत्सर्ग में रहता हूँ । (यह उत्तरीकरण किससे होता है, यह बताने के लिए कहते हैं कि...) पायच्छित्त-करणेणं, प्रायश्चित्त-करणेन, प्रायश्चित्तकरण द्वारा (प्रायश्चित्तकरण किससे होता है, वह बताने के लिए कहते हैं कि...) विसोही-करणेणं, विशोधि-करणेन, विशोधिकरण द्वारा (विशोधिकरण किससे होता है, वह बताने के लिए कहते हैं कि...) 2 मतांतर से यह इरियावहिया सूत्र की आठवीं संपदा है । इरियावहिया सूत्र के अंतिम पद 'मिच्छा मि दुक्कडं' का समावेश भी आठवी संपदा में हो जाता है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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