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सूत्र संवेदना
दूसरों के बारे में अशुभ विचार करने से, कर्कश या कटु वचन के उच्चारण से वाणी द्वारा मनुष्यों संबंधी विराधना होती है । यह सब मनुष्य संबंधी विराधना है। इनमें से किसी भी प्रकार से विराधना हुई हो, तो यह पद बोलकर दयाभावपूर्वक उसका मिच्छामि दुक्कडं देना है ।
जीवविचार में एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय तक के जीवों के ५६३° उत्तरभेद बताये गये हैं । उसमें से किसी भी जीव की विराधना की हो, तो उसे याद करके इन पाँच पदों द्वारा उनकी क्षमा माँगनी चाहिए ।
यहाँ छट्ठी जीव संपदा पूरी होती है । इन पदों द्वारा जीवों के प्रकार दर्शाये हैं । इसलिए यह जीव संपदा से जानी जाती है ।
अब ५६३ प्रकार के जीवों को किस प्रकार दुःखी किया जाता है, यह बताते हैं -
७. विराधना संपदा : अभिहया', वत्तिया, लेसिया', संघाइया', संघट्टिया, परियाविया, किलामिया', उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया,
जीवियाओ ववरोविया : ___ ५६३ प्रकार के जीवों को लात से मारें हो), धूल से ढंकें हो(२), आपस में अथवा जमीन पर मसले हो३), इकट्ठे किये हों४), (परस्पर शरीर द्वारा टकराये हो), थोडा स्पर्श किया हो५), परिताप उत्पन्न किया हो ६), खेद में डाला हो७), उद्वेग पैदा किया हो८), एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखे हो), प्राण रहित किये हो(१०) । । । 4. तिर्यंच = ४८ (एकेंद्रिय + विकलेंद्रिय + पंचेंद्रिय)
। २२६ २० नरक = १४ (७ नारकी के पर्याप्त एवं अपर्याप्त) देव = १९८ (९९ x २) मनुष्य = ३०३ (१५ कर्मभूमि के + ३० अकर्मभूमि के + ५६ अंतरद्वीप के = १०१
५६३ प्रकार के मनुष्य) x ३ (गर्भज पर्याप्त/अपर्याप्त समुर्छिम)