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इरियावहिया सूत्र . १४९ अभिहया : सामने आते जाते हुए जीव को पैर से ठोकर लगाई हो । वत्तिया : ढेर किया हो या जीव को धूल से ढंका हो। लेसिया : जमीन पर जीव को दबाया हो या थोड़ा भी कुचला हो ।
संघाइया : परस्पर एक दूसरे के अंग दब जाए, इस प्रकार जीवों को इकट्ठा किया हो,
संघट्टिया : जीवों को थोड़ा स्पर्श किया हो। परियाविया : अनेक प्रकार से जीवों को अत्यंत पीड़ा दी हो । किलामिया : प्राणांतिक पीड़ा दी हो । उद्दविया : अत्यंत भयभीत किया हो ।
ठाणाओं ठाणं संकामिया : जीवों को उनके स्थान से उठाकर अन्य स्थान पर रखा हो, एवं
जीवियाओ ववरोविया : प्राण रहित किया हो । इन दस प्रकारों से ५६३ प्रकार के जीवों को दुःखी करके जो पाप बांधे हों, उन पापों से मुक्त होना
जिज्ञासा : परिताप एवं किलामणा में क्या अन्तर होता है ?
तृप्ति : सर्व प्रकार के शारीरिक दुःखरूप संताप से दुःख पैदा करना परिताप है एवं पसीना, आंसू वगैरह पैदा हो ऐसा कष्ट देना किलामणा है अथवा परिताप में शारीरिक दुःख देना होता है एवं किलामणा में जीव को मानसिक दुःख देना होता है। यही परिताप एवं किलामणा में मुख्य भेद है ।
जीवों की विराधना के अनेक प्रकार हैं । उनमें से यहाँ तो मात्र दस प्रकार ही बताये गये हैं । इनके अलावा भी अन्य बहुत प्रकार से हिंसा का पाप लगता है । शास्त्रकारों ने तो यहाँ तक कहा है कि, जीव को बचाने की कोई भावना या यत्न न किया हो अथवा जीव को मारने की भावना न