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सूत्र संवेदना
हुए या घर में अयतनापूर्वक सब्जी आदि सुधारते ( काटते) हुए ध्यान न रखा जाए, तो इन सब जीवों की हिंसा होती है । यह पद बोलते समय उन विराधनाओं को याद करके उनका मिच्छामि दुक्कडं देना है ।
स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय इन तीन इन्द्रियोंवाले
तेइंदिया जीव -
चींटी, मकड़ी, खटमल, दीमक, ईली, अनाज के कीडे, घी में उत्पन्न होनेवाले कीडे (घीमेल), जू, कानखजूरा वगैरह तेइन्द्रिय जीव हैं। खुद के सुख में बाधक बननेवाले इन जीवों को बहुत बार दवाओं से नाश किया जाता है । बहुत बार पैर या वाहन के नीचे आकर ये जीव मर जाते हैं। अनाज वगैरह से निकलती ईली और बाल में होनेवाली ज वगैरह को कहीं भी डालने से उसे पीड़ा होती है, यह सब तेइन्द्रिय जीवों की विराधना है । यह पद बोलते हुए उन विराधनाओ को स्मरण में लाकर आर्द्र हृदय से मिच्छामि दुक्कडं देना है ।
चउरिंदिया - स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय इन चार इन्द्रियों वाले जीव :
बिच्छू, मक्खी, मच्छर, तीड़, किट्टी वगैरह चउरिंद्रिय जीव हैं । ये त्रस जीव पूर्व के जीवों की अपेक्षा ज्यादा स्पष्ट चेतनावाले जीव हैं । हमें पीडाकारक बनने वाले इन जीवों की अनेक प्रकार से हिंसा होती है । उनके प्रति अरुचि, द्वेषभाव वगैरह सब चउरिंद्रिय जीवों की विराधना है यह पद बोलते समय उनकी विराधनाओं को याद करके दुखार्द्र हृदय से उसका मिच्छामि दुक्कडं देना है ।
पंचिंदिया : स्पर्श्वेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय इन पाँच इन्द्रियोंवाले जीव :
देव, नारक, मनुष्य और तिर्यंच : ये चार प्रकार के पंचेंद्रिय जीव हैं । उसमें मनुष्य और तिर्यंच के दो भेद हैं । संज्ञी एवं असंज्ञी अर्थात् मनवाले