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________________ इरियावहिया सूत्र ओसा - उत्तिंग- पणग-दगमट्टी- मक्कडा-संताणा-संकमणे : ओस की बूँदों को, चींटियों के बिलों को, काई, कीचड़, मकड़ी के जाले आदि को खोदकर या कुचलकर । १४१ ओसा - अर्थात् प्रभात काल में पड़ी ओस (पानी) की बूँदें । उन पर चलते हुए, उन पर पैर रखते हुए या हाथ से भी उनकी कोई विराधना हुई हो, तो उनकी इस पद से क्षमा माँगनी है । उत्तंग - भूमि में गोल छिद्र करनेवाले गर्दभ आकार के जीव अथवा चींटियों के बिलों । उनको बंध करते हुए, उनमें पानी आदि चले जाने से या हाथ-पैर से उन्हें कोइ परेशानी हुई हो, तो उस पीडा की उनसे क्षमा माँगनी है । पण काई (moss - fungi) । विशेषतया वर्षाऋतु में, नमीवाले वातावरण में खाद्य पदार्थों के ऊपर, पृथ्वी पर या मैले वस्त्रादि पर काई (फफूँद) होने की संभावना होती है । इस काई आदि की किसी भी तरह से विराधना हुई हो, तो उन संबंधी मेरे सब दुष्कृत मिथ्या हों । - दग-मट्टी - कच्चा पानी अथवा कीचड़, ढीला कीचड़, पानी एवं मिट्टी के मैल से जो 2 कीचड़ बनता है, उस ढीले कीचड़ को दग-मट्टी कहते हैं । अथवा दग = कच्चा पानी एवं मट्टी = सचित्त मिट्टी । उसकी भी किसी भी तरह से विराधना की हो । मिट्टी खाने में, उसके ऊपर चलने में, खेती या खुदाई करने में मिट्टी के जीवों की विराधना होती है तथा कोहरा ( Fog) पड़ने से या बरसात के दिनों में जमीन पर पड़े हुए कच्चे पानी या शरीर, पुस्तक आदि के ऊपर जो पानी पड़ा हो, उसकी जयणा न की हो, उसको फूंक मारकर या हाथ से पोंछकर फेंकने के कारण जो पानी के जीवों की विराधना हुई हो, गर्मी के दिनों में पानी के जलाशय, नदियों आदि को देखकर आनंद हुआ हो, नदी में उतरते हुए पानी के जीवों का स्पर्श दिल को भाया हो, नायगरा वगैरह प्रपात या झरने देखने में आनंद माना हो, तो उन सब पापों की विराधना के लिए, 'मिच्छामि दुक्कडं' देना है । 2. यहाँ 'दग' का अर्थ है कच्चा पानी और 'दगमट्टि' शब्द ले तो उसका अर्थ होता है कीचड |
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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