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सूत्र संवेदना
स्वस्थान से अन्यत्र जाना, गमन है एवं स्वस्थान में वापस आना, आगमन है । किसी भी स्थान पर जाने में एवं वहाँ से वापस लौटने में हुई विराधना का इस सूत्र द्वारा प्रतिक्रमण करना है ।
यहाँ तीसरी ‘ओघ संपदा' पूरी हुई । इस पद द्वारा विराधना का सामान्य हेतु दर्शाया गया है । इसलिए इसे 'ओघ' अर्थात् ‘सामान्य हेतु संपदा' कहते हैं । विराधना का कारण बताने के बाद अब उसके प्रकार बताते हैं । ४. विशेष हेतु संपदा : पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे - प्राणियों को कुचलने से, बीजों पर चलने से, हरी वनस्पति को कुचलने से ।
पाणक्कमणे - अर्थात् प्राणी पर आक्रमण करना । सामान्य से पाँच इन्द्रिय, मनोबल, वचन बल, कायबल, आयुष्य एवं श्वासोश्वासरूप दस प्राणों में से जिसमें यथायोग्य प्राण होते हैं, उसे प्राणी कहते हैं । परन्तु यहाँ जिन में इन्द्रियाँ व्यक्त हुई हों, वैसे जीवों को ग्रहण करने के लिए ही प्राणी शब्द का प्रयोग हुआ है अर्थात् दो इन्द्रियादि से युक्त जीव हि यहाँ प्राणी शब्द से लेने है । बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के सब जीवों का हनन करना अर्थात् पैर द्वारा जीवों को कुचलना, दबाना वगैरह । __बीयक्कमणे : अर्थात् बीज को कुचलने या दबाने से । सचित्त गेहूँ,
मूंग, बाजरी आदि धान्य के दाने या दूसरे किसी भी प्रकार के सचित्त बीज पैरों के नीचे आए हों अथवा हाथ से या अन्य किसी वस्तु से उनकी विराधना हुई हो, तो इस पद द्वारा उन विराधनाओं को याद करके उनकी क्षमायाचना करनी है।
हरियक्कमणे : हरी वनस्पति, हरी घास पेड़, पौधे या अन्य किसी वनस्पति के उपर पैर आया हो, हाथ-वस्त्र आदि से उनकी विराधना हुई हो, तो इस पद द्वारा उनको याद करके क्षमा माँगनी है ।