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सूत्र संवेदना
उपयोग हो गया है । हे कृपालु ! इस तरह मैं कई बार आप की अप्रसन्नता का निमित्त बना हूँ । यह मुझसे गलत हुआ है। ऐसा करके मैंने अपने अहित को आमंत्रण दिया है । आपके प्रति हुए मेरे इन सब अपराधों को याद करके दुःखार्द्र हृदय से
मैं आप से माफी माँगता हूँ ।” । इस प्रकार 'भत्ते पाणे' आदि अप्रीति या विशेष अप्रीति के स्थान बताकर शिष्य उन संबंधी अपराधों की क्षमापना करता है ।
अब दूसरे प्रकार का अपराध बताते हैं । जं किंचि मज्झ विणय-परिहीणं : मुझसे जो कोई विनय रहित कार्य हुआ हो ।
विविध प्रसंगों में कोई भी अपराध हुआ हो, उनको बताने के लिए ‘विणय-परिहिणं' शब्द का प्रयोग किया गया है । इससे ‘विनयरहित व्यवहार द्वारा मुझसे जो कोई भी अपराध हुआ हो, ऐसा अर्थ करना है ।
सुहुमं वा बायरं वा : सूक्ष्म या बादर ।
गुरु के प्रति सूक्ष्म अथवा बादर कोई भी अपराध हुआ हो, तो उसके लिए मैं क्षमा माँगता हूँ । सूक्ष्म अर्थात् छोटा अपराध; यह अपराध अल्प प्रायश्चित्त से शुद्ध हो सकता है एवं बादर अर्थात् बड़ा अपराध; यह अपराध बड़े प्रायश्चित्त से शुद्ध हो सकता है ।
पाप छोटा हो या बड़ा वह बाह्य व्यवहार से निश्चित्त नहीं होता । कई बार बाहर से बहुत छोटा दिखाई देनेवाला पाप भी गीतार्थ भगवंतों की दृष्टि में बहुत बड़ा होता है । जैसे कि सिद्धसेन दिवाकरसूरीश्वरजी महाराज की शास्त्रों का संस्कृत में परिवर्तन करने की भावना यह पाप बाह्य दृष्टि से बड़ा न होते हुए भी गीतार्थ गुरु भगवंत की दृष्टि में बड़ा पाप था इसलिए उन्हें बड़ा प्रायश्चित्त दिया एवं अईमुत्ता मुनि द्वारा की हुई पानी की विराधना