SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२१ अब्भुट्ठिओ सूत्र उसका वर्णन करने बैठ जाए, जिसके कारण गुरु शिष्य से मंद बुद्धिवाले हैं, ऐसी लोक में छबि बनती है। ये सब गुरु के विषय में अविनय है । इन सबकी माफी माँगनी चाहिए । सुयोग्य शिष्य गुरु की प्रतिभा को अल्प करने की कभी भी इच्छा नहीं करता, तो भी कभी-कभी अन्य को समझाने की तीव्र उत्सुकता, उचित विचार का अभाव एवं मानादि कषाय की प्रबलता से ऐसा हो कि जिसके कारण गुरु की अल्पता लगे तो, वह अविनय है । वाचना, व्याख्यान या बातचीत में गुरु की कोई भूल हुई हो अथवा गुरु का क्षयोपशम उस विषय में अपने से कम हो तो गुणसंपन्न शिष्य गुरु की स्खलना के समय मौन रहता है । जब योग्य समय आए, तब विनयपूर्वक गुरु को सत्य वस्तु जिस तरह से है, उसे उस तरह से समझाए एवं इस तरह प्रयत्न करें कि गुरु भी निश्चितरूप से उचित प्रवृत्ति में यत्नवाले बने । इसके बदले जोर से बोलने से या बाद में भी अयोग्य तरीके से समझाने में अविनय होता है । इन पदों का उच्चारण करते हुए सोचना चाहिए कि, “गुरुवर ! आप मेरे आराध्य हैं । आपकी प्रसन्नता में ही मेरी आत्मा की उन्नति है । यह जानते हुए भी हे भगवंत ! प्रमादवश आहार-पानी विषयक जो उपयोग रखना चाहिए, वह मैं नहीं रख पाया हूँ । आप जैसे पूज्य के साथ मुझे हमेशा नम्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए था, पर मान के कारण कई बार इस विषय में मैं चूक गया हूँ । शरीर के राग से या स्वाध्यायादि के लोभ से वैयावच्च के समय में सावधान नहीं रह पाया । अहंकार और उद्धताइ-उदंडता के कारण आपके साथ बातचीत करते हुए मुझे जिस तरह उत्तर देना चाहिए था, उस तरह मैं नहीं दे पाया । कभी कभी आप से ऊँचे आसन का भी
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy