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अन्भुट्ठिओ सूत्र रूप हिंसा का पाप स्पष्ट होते हुए भी उनको प्रायश्चित्त के रुप में भगवान ने मात्र इरियावहिया करने को कहा।
गीतार्थ गुरु भगवंत मात्र बाह्य दृष्टि से पाप सूक्ष्म है या बादर उसका विश्लेषण नहीं करते, उनकी दृष्टि अति गंभीर और सूक्ष्म होती है; उस दृष्टि से अपराधों का विभाग कर हमें उनकी क्षमा माँगनी है ।
दूसरे प्रकार के अपराध की माफी मांगते हुए साधक के दिल में ऐसा भाव होना चाहिए कि,
'हे परमोपकारी गुरुदेव ! आपका विनय मेरे कल्याण का मूल है । फिर भी छोटे-बड़े मुद्दो में कई बार मैं विनय चूक गया हूँ । यह मुझसे बहुत बुरा हुआ है । उसके लिए मैं आपसे
क्षमा चाहता हूँ। अब तीसरे प्रकार के अपराध बताते हैं । तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि, : आप जानते हैं, मैं नहीं जानता ।
कई अपराध ऐसे होते हैं, जिनका शिष्य को ज्ञान नहीं होता । परन्तु गुरु भगवंत उस अपराध को जानते हैं। इस विषय में चतुर्भगी इस प्रकार हो सकती है ।
१. आप जानते हैं, मैं नहीं जानता - गुरु भगवंत शास्त्रज्ञाता होते हैं । इसलिए बहुत सी बातों में हमें जो अपराध नहीं लगता, वह उनकी दृष्टि में अपराध होता है ।
२. आप जानते हैं, मैं भी जानता हूँ - बहुत से अपराध ऐसे होते हैं जिनकी शिष्य को जानकारी होते हुए भी, कषाय की प्रबलता, विषयों की आसक्ति, अधीराई, प्रमाद, उतावलापन आदि दोषों के कारण जो अपराध हुए हों और जिन्हें गुरु भगवंत भी जानते ही हों ।
३. मैं जानता हूँ, आप नहीं जानते - बहुत बार संकल्प-विकल्पवाले मन के कारण गुरु के विषय में न करने योग्य विचार किए हों, जो गुरु भगवंत