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________________ अब्भुट्टिओ सूत्र विनय एवं वैयावच्च तीर्थंकर नामकर्म का बंध करवाने में निमित्तभूत हैं, बीसस्थानक में भी उनका अनुक्रम से दसवां और सोलहवां स्थान है । इसीलिए वास्तव में साधक को अपनी बुद्धि का पूर्ण उपयोग कर इसमें प्रवृत्त होकर विनय एवं वैयावच्च द्वारा गुरु को संतोष देकर उनकी प्रसन्नता में अभिवृद्धि करनी चाहिए । याद रखना चाहिए कि गुरु की प्रसन्नता - प्रमोद अपनी आराधना की नींव है । इसीलिए सुशिष्य विनय वैयावच्च संबंधी अपनी त्रुटियों का विचार कर अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयत्न करते हुए यदि ये शब्द बोलता है, तो विनयादि में विघ्न करनेवाले कर्मों का नाश जरूर होता हैं एवं विनयादि में वह विशेष यत्न कर सकता है । आलावे, संलावे, : गुरु के साथ बोलने और बातचीत करने के विषय में । ११९ गुरु भगवंतों का एक-एक क्षण बहुमूल्य होता है। इसलिए अनावश्यक बातचीत करके उनका मूल्यवान समय नहीं बिगाडना चाहिए । जब भी कोई कार्य, प्रसंग उपस्थित हो और गुरु भगवंत से बातचीत करनी पडे, तब विनयपूर्वक हाथ जोड़कर, अति नम्रता से योग्य स्वर में बात करनी चाहिए । गुरु भगवंत अन्य कार्य में व्यस्त हों, तो जब तक गुरु भगवंत अपने सम्मुख न देखें, तब तक इंतजार कर विनयपूर्वक खड़ा रहना चाहिए। जब गुरु भगवंत सामने देखें, तब अति नम्रता से, और उत्तम भावों से उनके साथ बातचीत करनी चाहिए । इसमें किसी भी प्रकार की कमी रही हो या गुरु भगवंत बुलाए, तब तुरंत ही आसन से उठकर, हाथ जोड़कर जिस प्रकार उत्तर देना चाहिए, उस प्रकार उत्तर न दिया हो, यथायोग्य रीति से बातचीत न की हो, जिसके कारण गुरु भगवंत को जो अपनी तरफ से अप्रीति हुई हो अथवा उनके साथ बातचीत करने से या गुरु के बोलने से खुद को कोई अप्रीति हुई हो, तो इस पद द्वारा उनसे क्षमायाचना करनी चाहिए ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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