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________________ अब्भुट्ठिओ सूत्र भी मैंने अपने स्वार्थ के लिए उनको अप्रसन्न किया है 1 मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है । दुःखार्द्र हृदय से मैं उस अपराध की माफी माँगता हूँ एवं ऐसी भूल दोबारा न हो ऐसा संकल्प करता हूँ ।” ११७ अब किन विषयों में अप्रीतिकर या विशेष अप्रीतिकर वर्तन हुआ हो, तो उनका 'मिच्छामि दुक्कडं' दिया जाता है उसे विषयों को बतलाते हुए कहते हैं कि, भत्ते, पाणे, : भात एवं पानी के विषय में । गुरु ने निर्दोष आहार आदि लाने को कहा हो, पर उस बात पर ध्यान न देकर निर्दोष लाते हुए भी गुरु के स्वास्थ्य के लिए जो अनुकूल हो वैसा नहीं लाया बल्कि उनके स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल हो, वैसा आहार या पानी लाया हो, इस प्रकार अपनी तरफ से गुरु को कोई अप्रीति हुई हो, तो उस विषय में क्षमा माँगते हैं । इसके अतिरिक्त, गुरु भगवंत ने शिष्य के लिए भी निर्दोष एवं अमुक प्रकार का आहार लाने को कहा हो, तब भी उपेक्षा से या विषयों की अधीनता से गुरु की इच्छा के विरुद्ध आहार लाने से उनको अपने प्रति घृणा या अरुचि हुई हो, तो उसकी क्षमा माँगते हैं । इसके अतिरिक्त गुरु भगवंत ने आहार या पानी संबंधी कोई आदेश दिया हो, जो स्वयं को अच्छा न लगा हो अथवा उनके आदेश के विरुद्ध स्वयं से कुछ भी हुआ हो, तो वे सब गुरु संबंधी भात एवं पानी के विषय में हुए अपराध हैं । इन अपराधों की क्षमा मांगी जाती है । साधु की तरह श्रावक से भी गुरु के प्रति आहार आदि संबंधी अप्रीतिकर कार्य होने की संभावना होती है । जैसे कि, गुरु भगवंत को गोचरी आदि के लिए आमंत्रण देने न जाना, निमंत्रण देने के पश्चात् गुरु भगवंत को लेने न जाना, घर पधारे हुए गुरु भगवंत को भावपूर्वक न वहोराना, उनके संयम को या उनके शरीर को प्रतिकूल हो वैसा वहोराना, आत्म कल्याण की भावना न रखते हुए पूर्वकृत राग से, मान से या द्वेषादि
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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