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अब्भुट्टिओ सूत्र
खामेमि देवसिअं / राइअं : दिवस या रात्रि संबंधी हुए मेरे अपराधों को मैं खमाता हूँ ।
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“मैं खमाता हूँ” ऐसा कहकर दिवस या रात में आपके प्रति मुझसे जो जो भूल हुई है, उसकी मैं क्षमा माँगता हूँ, ऐसा गुरु से कहा गया है ।
'खामेमि' शब्द “खमाने = क्षमा माँगने" अर्थ में प्रयुक्त “क्षम् " धातु का प्रेरक रूप है । “खमना" अर्थात् सहन करना, वैर वृत्ति का त्याग करना, खामोश रहना, शान्ति रखना, उदारता रखनी; जब कि “खमाना" प्रेरक रूप है अतः उसका अर्थ होता है, सामनेवाले से क्षमा की अपेक्षा रखना या सामनेवाले व्यक्ति से क्षमा माँगना तथा सामनेवाला व्यक्ति भी वैरभाव की वृत्ति का त्याग करे, ऐसी भावना रखना ।
“खमाना” प्रेरक रूप होने से यहाँ 'खामेमि' शब्द द्वारा शिष्य गुरु से क्षमा माँगकर, गुरु अपने अपराधों को क्षमा करें, ऐसा शिष्य चाहता है ।
गुरु से उदारता एवं क्षमा की माँग इसलिए की जाती है कि अपने अप्रीतिकारक व्यवहार से गुरु भगवंत को किसी भी प्रकार का दुःख हुआ हो या क्रोध करने का निमित्त मिला हो, तो उसकी उपशांति हो और हमें विनय तथा औचित्य का ख्याल रहे, जिसके फलस्वरूप हमारी आत्मा की शुद्धि हो । इस तरह उपयोगपूर्वक बोलनेवाला साधक भविष्य में गुरु विषयक अपराध तो नहीं ही करता, परन्तु समर्पित होकर गुरु की आज्ञानुसार जीवन बनाने का प्रयत्न भी करता है ।
इच्छं खामेमि : इतने शब्द बोलते हुए शिष्य गुरु से भावपूर्वक निवेदन करता है कि,
“हे गुरु भगवंत ! कृपा करके आप मुझे माफ करें । आप तो दया के निधान हैं, उदारदिल हैं खामोश रहना, सहन करना तो आपका स्वभाव है इसलिए आप कभी आकुलव्याकुल नहीं होते । पर मुझे मालूम है कि आप को तकलीफ