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अब्भुट्टिओ सूत्र
११३ 'इच्छाकारेण' शब्द द्वारा इच्छाकार समाचारी' का पालन होता है । जैन शासन की ऐसी रीति रही है कि, शिष्य अगर कोई भी कार्य करना चाहे, तो उसे पहले अपनी इच्छा गुरु को निवेदित करनी चाहिए जैसे कि, 'आपकी इच्छा हो, तो मैं यह कार्य करूँ ।' उसके बाद गुरु की आज्ञा मिले, तो शिष्य कार्य करता है । अब्भुट्ठिओमि : मैं उपस्थित हुआ हूँ। , ___ 'अब्भुट्ठिओमि' शब्द अभि+उत् पूर्वक स्था धातु से बने संस्कृत शब्द 'अभ्युत्थितः' का प्राकृतरूप है । इस शब्द से ज्ञात होता है कि शिष्य अपराधों की क्षमा मांगने की मात्र इच्छा ही नहीं दर्शाता । परन्तु “मैं आपके समक्ष अप्रमत्त भाव से, बहुमानपूर्वक खड़ा हुआ हूं" - ऐसा कहकर शिष्य क्षमा माँगने की तत्परता दिखाता है । इसीलिए 'तिष्ठ' शब्द का प्रयोग नहीं करते हुए यहाँ ‘उत्तिष्ठ' शब्द का प्रयोग किया गया है ।
अपनी इच्छा के निवेदन द्वारा अनुज्ञा माँगकर अब वह किसलिए उपस्थित हुआ है, यह बताने के लिए शिष्य कहता है, अभिंतर देवसि । राइअं खामेउं : दिन या रात्रि में हुए अपराधों की क्षमा माँगने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूँ।
आज्ञा का विषय क्या है, वह दर्शाते हुए शिष्य कहता है कि “दिन या रात्रि के बीच मुझसे आपके प्रति कोई भी अपराध हुआ हो, तो उसे खमाने के लिए मैं तत्पर हुआ हूँ ।” 'खमाना' यह प्राकृत शब्द है, जिसका अर्थ 'क्षमा माँगना' ऐसा होता है । ये दो शब्द बोलते ही शिष्य पूरे दिन में कौन 2. सामाचारी अर्थात् कषाय का स्पर्श किए बिना चारित्र की पुष्टि के लिए की गई जीव की
प्रवृत्ति । शास्त्रों में साधु संबंधी ओघ, पदविभाग एवं दशविध समाचारी बताई गई है । उसमें १. इच्छाकार सामाचारी, २. मिच्छाकार सामाचारी, ३. तथाकार सामाचारी, ४. आवश्यकी सामाचारी, ५. नैषेधिकी सामाचारी, ६. आपृच्छना सामाचारी, ७. प्रतिपृच्छा सामाचारी, ८. छंदना सामाचारी, ९. निमंत्रणा सामाचारी, १०. उपसंपदा सामाचारी । इन दस को दसविध चक्रवाल सामाचारी कहते हैं ।