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सूत्र संवेदना
भत्ते, पाणे, विणए, वेयावझे, आलावे, संलावे, उदासणे, समासणे, अंतरभासाए, उवरिभासाए, भक्ते, पाने, विनये, वैयावृत्ये, आलापे, संलापे, उच्चासने, समासने, अन्तर्भाषायाम्, उपरिभाषायाम् ।
आहार-पानी संबंधी, विनय-वैयावच्च संबंधी, सामान्य बोलने में या विशेष बातचीत में, ऊँचे आसन या समान आसान पर बैठने संबंधी, बीच में बोलने या अधिक बोलने संबंधी (मेरा जो अपराध हुआ हो, उस संबंधी पाप मिथ्या हो)
जं किंचि अपत्तियं, परपत्ति, यत् किञ्चित् अप्रीतिकम्, पराप्रीतिकम्, जो कुछ मैंने आप के प्रति अप्रीतिकर या विशेष अप्रीतिकर किया हो । जं किंचि मज्झ विणय-परिहीणं, सुहुमं वा बायरं वा, तुब्भे जाणह, अहं न जाणामि, तस्स मि दुक्कडं मिच्छा ।
यत् किञ्चित् मम विनय-परिहीनं सूक्ष्म वा बादरं वा यूयं जानीथ, अहं न जाने, तस्य मे दुष्कृतम् मिथ्या । मुझसे विनयशून्य (असभ्यतापूर्वक) छोटा या बडा जो कुछ अनुचित आचरण हुआ हो, जिसे आप जानते हैं और मैं नहीं जानता, उन सब अपराधों की मैं क्षमा मांगता हूँ, मेरा वह पाप मिथ्या हो । विशेषार्थ :
इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! : हे भगवंत ! आप मुझे इच्छापूर्वक आज्ञा दीजिए । _ 'हे भगवंत ! मुझे आज्ञा दीजिए, यह शब्द बोलते हुए शिष्य के हृदय में ऐसा भाव होता है कि भगवंत ! आपकी इच्छा हो, तो मुझे आज्ञा दीजिए । परन्तु मैं मांगता हूँ इसलिए आपको आज्ञा देनी ही है, ऐसा मेरा आग्रह नहीं है । हृदय में रहा हुआ यह भाव विनय-नम्रता का सूचक है ।