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________________ १०८ सूत्र संवेदना अगर भविष्य में होनेवाली बात में अभी से हाँ या नहीं कहें और कोई आपत्ति आए अथवा कोई संजोग बदल जाए और नहीं जाए, तो दिया हुआ वचन मिथ्या होता है और मृषावाद का दोष लगता है। ऐसा न हो इसलिए 'वर्तमान जोग' जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। गुरु भगवंत की बाह्य एवं अंतरंग सुखशान्ति की इच्छा करनेवाला साधक अति उत्साहित होकर गुरुदेव को विविध प्रश्न पूछते हुए सोचता है कि, “ अहो ! मेरे गुरु भगवंत आत्म कल्याण करनेवाले तप, संयम, स्वाध्याय आदि में कितना अच्छा समय व्यतीत करते हैं । इन सब अनुष्ठानों में लीन होकर वे आत्मानंद की अनुभूति करते हैं । जब कि, पुत्रपरिवार में उलझकर भौतिक सुख के लिए व्यर्थ परिश्रम करता हुआ मैं आत्मानंद के लिए कुछ भी नहीं कर पाता । धिक्कार है मुझे एवं धन्य हैं ये महात्मा ! इन महात्माओं की भक्ति करके मैं भी अपने चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय कर शीघ्र ही आत्मानंद की अनुभूति करूँ ।”
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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