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________________ १०७ इच्छकार सूत्र . १०७ 'देव-गुरु-पसाय' अर्थात् देव-गुरु की परम कृपा से मुझे परम सुख शाता है। यह उत्तर सुनकर शिष्य को अत्यंत आनन्द होता है कि, मेरे गुरु भगवंत के उपर देव-गुरु की महती कृपा रही है, जिससे उनके दिन-रात सुन्दर तरीके से बीत रहा है अगर रात्रि या दिन इस तरह न बीतते हों तो गुरुभगवंत मौन रहते हैं, जिससे मृषावाद न लगे एवं शिष्य भी अपनी शक्तिअनुसार संयम में आनेवाली प्रतिकूलता और विघ्नों को दूर करने का प्रयत्न कर सके । ऐसा जवाब सुनने के बाद भक्त को अनुभव होता है कि, यदि संयमी गुरु भगवंत की मैं आहार-पाणी द्वारा भक्ति करूँगा तो मेरे भी कर्मों की निर्जरा होगी एवं ऐसे संयमी गुरु को आहारादि देने से मेरा जन्म सफल होगा और चारित्र-मोहनीय कर्म का क्षय होकर मुझे चारित्र की प्राप्ति होगी क्योंकि, सुपात्र को दिया हुआ दान महाफलदायी होता है । इसलिए वह उनसे निवेदन करता है कि, भात-पाणी नो लाभ देजो जी : आहार-पानी का लाभ दीजिएगा। मेरे यहाँ आहार-पानी वहोरने (ग्रहण करने) के लिए पधारकर लाभ देने की कृपा कीजिए। भात-पानी के ग्रहण द्वारा उपलक्षण से प्रासुक (निर्जीव) और निर्दोष वस्त्र, पात्र, कंबल, औषध, रजोहरण आदि का ग्रहण भी करना है । यह सुनकर गुरु 'वर्तमान जोग' कहते हैं अर्थात् जब भात-पानी का अवसर आएगा, तब मेरी अनुकूलता के अनुरूप करूँगा । अर्थात् अभी तो भात-पाणी का समय नहीं है अर्थात् अभी भात-पानी लेने के लिए नहीं जाना है पर भात-पानी लेने का भावीकाल जब वर्तमान बनेगा, उस समय जैसा योग्य लगेगा, वैसा करूँगा ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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