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होता है। सूत्र शब्दों से बने हैं और शब्द अक्षरों से बने हैं।' अक्षरों में अनंत शक्ति निहित होती है। परन्तु उसे हमें जगानी होती है एवं उसे जगाने के लिए हमें सूत्रों में प्राण भरने पड़ते हैं। यह प्राण फूँकने की क्रिया अर्थात् सूत्र का संवेदन, सूत्र का जब हमें संवेदन होता है, तब सूत्र सजीवन बन जाता है एवं उसके बाद उसमें से कल्पनातीत शक्ति का आविर्भाव होता है जो हममें रहे अनंत कर्मों को क्षय करने में सक्षम होती है।
विदुषी साध्वी श्री प्रशमिता श्रीजी ने 'सूत्र संवेदना' की बात करके आराधना मार्ग की एक अति महत्व की एवं आवश्यक बात की तरफ सभी आराधकों का ध्यान खींचा है। इतना ही नहीं, परंतु सूत्र संवेदना का पूरा मार्ग चित्रित किया है ताकि आराधक कहीं भूल न जाए एवं सरलता से मार्ग पकड़ कर मुक्ति के अंतिम मुकाम तक पहुँच सके। सूत्र की संवेदना के लिए भाव चाहिए। सूत्र का अर्थ जाने बिना भाव नहीं होता एवं शब्द का मर्म समझे बिना सूत्र का अर्थ समझ नहीं आता। इस प्रकार, सूत्र संवेदना कोई छोटी-मोटी बात नहीं। इसके लिए बहुत सारी पूर्व तैयारी एवं क्षमता का प्रयोग करना पड़ता है । हमारे यहाँ कहा जाता है कि 'श्री तीर्थंकर परमात्मा को एक ही नमस्कार अगर विधिपूर्वक किया जाए तो वह जीवों को संसार सागर पार कराने में समर्थ होता है।' इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है । परन्तु उसके पीछे रही हुई बात समझनी है । यहाँ 'सामर्थ्ययोग' से किए नमस्कार की अपेक्षा से यह फलवर्णन किया गया है । इच्छयोग व शास्त्रयोग की साधना जब संवेदना बनती है तब वह आगे जाकर सामर्थ्ययोग को प्रगटाती है । उसी तरह नमस्कार महामंत्र आदि सूत्रों भी समझें । यदि संवेदनापूर्वक नवकार महामंत्र की आराधना हुई हो तो ही वह एक नवकार इतना समर्थ - शक्तिशाली बन सकता है कि, जिससे जीव अनेक जन्मों से आत्मा पर लगे हुए कर्मों की निर्जरा करने में सक्षम बना रहता है ।
पुस्तक में निरूपण किए हुए सूत्रों में से हम एक सूत्र - खमासमण सूत्र की बात करें। उसके विषय में चर्चा करते हुए साध्वीश्री बताती हैं कि, 'गुणवान के प्रति आदर ही गुण की प्राप्ति में विघ्न करनेवाले कर्मों का