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सूत्र संवेदना
काया की पूर्ण शक्ति का उपयोग करके वंदन करना है । मन से गुरु भगवंत के जितने गुण हैं उनका चिन्तन करते हुए, वचन से शुद्ध शब्दोच्चारणपूर्वक एवं काया से सत्रह संडासा सहित और पाँच अंगों को यथार्थ रीति से झुकाकर मैं वंदन करना चाहता हूँ । वंदन के दौरान मेरी कोइ भी शक्ति कहीं और व्यापृत नहीं होगी । हे भगवंत ! तब मेरी पूर्ण शक्तियों का केन्द्र स्थान आप ही होंगे ।
अथवा यापनीया की क्रिया याने ले जाने की क्रिया । शास्त्रोक्त विधिवचनों की प्रेरणा से बाह्य भावों में जाते हुए इन्द्रियों और मन को रोककर गुरुवंदन की क्रिया में लगाने की क्रिया ही यापनीया क्रिया है । यापनीया द्वारा वंदन करना अर्थात् उपशमन क्रिया द्वारा वंदन करना । यह उपशमन करने की क्रिया दो प्रकार की है ।
१. इन्द्रिय यापनीय : पाँच इन्द्रियों के विकारों का उपशमन करना अर्थात् उनके वश नहीं होना, इन्द्रिय यापनीय है ।
२. नोइन्द्रिय यापनीय : चारों कषायों का उपशमन करना, नोइन्द्रिय यापनीय है ।
इन्द्रियों के विकारों या कषायों का उदय न हो ऐसे उपशांत मन एवं इन्द्रिय द्वारा वंदन करना ही यापनीयपूर्वक वंदन है ।।
पू. हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज ने इन शब्दों का अर्थ करते हुए कहा है कि, इन्द्रिय एवं मन की विषयों से तथा विकारों से उपघात रहित अवस्था यापनीय है, शिष्य इस यापनीयपूर्वक वंदन करने की इच्छा जताता है ।
जिज्ञासा : वंदनु की क्रिया क्यों यापनीय सहित करनी चाहिए ? 7. जावणिज्जाए = शक्तिसमन्विततया
- योगशास्त्र । 8. यापनीयया अर्थात यापनीयापूर्वक, यापनीय में यापन शब्द या धातु का प्रेरक विध्यर्थकृदंत है ।
संस्कृत भाषा में 'या' धातु जाना इस अर्थ में प्रयोग किया जाता है । अतः यापन का अर्थ होता है, ले जाना । योपनीय क्रिया याने ले जाने की क्रिया ।