________________
खमासमण सूत्र
भगवान के वचनानुसार ही मन-वचन-काया की प्रवृत्ति करना एवं क्रोध, जुगुप्सा, अरुचि, अमनोज्ञता, आवेश, संताप आदि कालायिक भावों से प्रभावित न होना, 'क्षमा' नाम का यतिधर्म है ।
मार्दव : नम्रता एवं कोमलता का भाव मार्दव हैं, वह मान एवं कठोरता का विरोधी भाव है । पुण्योदय से मिले हुए जाति आदि का अहंकार करना, हम कुछ हैं, ऐसी बडाई में रहना मान है । जबकि देव या मनुष्यों के द्वारा किए हुए सन्मान या पूजा-वंदना के समय 'मैं महान हूँ' ऐसा नहीं सोचना, किसी के भी द्वारा किए हुए अपमान या तिरस्कार में जरा भी विह्वल नहीं होना एवं ऐसा करते हुए भगवान के वचनानुसार मान कषाय
को जीतने का सुदृढ़ प्रयत्न करना ‘मार्दव' नामक यतिधर्म है । ___ आर्जव : सरलता का भाव आर्जव है, वह माया या वक्रता का विरोधी है । किसी को ठगने की वृत्ति माया' है, जब कि भगवान के वचनानुसार
आत्म भावों को स्फुरित करने के लिए स्वदोषों का विचार करने या स्वदोषों को गुरु के आगे निवेदन करना या किसी अन्य संयोग में भगवान ने कहा है कि माया नहीं करना, चित्त को वक्र न होने देना, ऐसा सोचते हुए माया के परिणामों को थोड़ा भी स्पर्श किए बिना सरलतापूर्वक जीने का यत्न करना ‘आर्जव' नाम का यतिधर्म है । __ मुक्ति : किसी भी वस्तु के संग्रह की इच्छा का अभाव मुक्ति है । वस्तु प्राप्त करने की इच्छारूप लोभ कषाय का यह विरोधी भाव है । मुनि जानता है कि इच्छा मात्र दुःखरूप है । अतः इच्छा मात्र से मुक्त होने की भावना मुनि को हमेशा रहती है । अतः वह शास्त्रानुसारी शुभ चिंतन द्वारा जड एवं चेतन पदार्थो की इच्छाओं के त्याग के लिए प्रयत्नशील रहता है । इच्छा के त्याग के लिए किया गया प्रयत्न ही 'मुक्ति' नाम का श्रमणों का धर्म है । 3. मानो जात्याद्यहंकृतिः xxx 4. माया कपटचेष्टितम् xxx 5. xxx लोभः पदार्थतृष्णा च
- योगसार