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सूत्र संवेदना
विशेषार्थ : इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं : हे क्षमाश्रमण ! मैं आपको वंदन करना चाहता हूँ।
सर्वप्रथम वंदन करनेवाला अपनी इच्छा का निवेदन करता है कि, हे क्षमाश्रमण ! किसी के दबाव से नहीं, परन्तु अपनी इच्छा से मैं आपको वंदन करना चाहता हूँ ।
'इच्छामि' कहने द्वारा गुरु को वंदन करने की इच्छा व्यक्त की जाती है। उसके बाद गुरु भी योग्य शिष्य को 'छंदेण' कहकर अनुज्ञा देते हैं । इस शब्द को सुनकर शिष्य हर्ष विभोर होकर वंदन के लिए उत्साहित होकर वंदन करता है ।
जिस श्रमण में क्षमा मुख्य हो वह अथवा क्षमा के लिए जो श्रम करता हो वह; क्षमाश्रमण कहलाता है । क्षमाप्रधान गुणवाले अरिहंतादि परमात्मा एवं क्षमा गुण को प्राप्त करने के लिए संयम की कठोर साधना करनेवाले आचार्य, उपाध्याय और साधु भगवंत जैनशासन में क्षमाश्रमण कहे जाते हैं ।
यहाँ क्षमाश्रमण शब्द द्वारा क्षमा के उपलक्षण से दस यतिधर्म में श्रम करनेवालों का बोध होता है । ये दस यतिधर्म इस प्रकार हैं - क्षमादि दस यतिथों का वर्णन :
क्षमा : क्षमा याने सहन करने का भाव । यह क्रोध नामक कषाय का विरोधी भाव है । क्रोध दुःख का कारण है, तो क्षमा वास्तविक सुख का कारण है। किसी के अपराध को सहन न करना, क्रोध है; तो किसी के अपराध को सहज स्वीकार लैना, क्षमा है । किसी व्यक्ति की तरफ से कटु वचन सुनने को मिले अथवा कोई उपसर्ग आए, तब क्रोध किए बिना मात्र इतना ही सोचना कि भगवान ने कहा है कि क्षमा रखनी चाहिए, क्योंकि क्षमा रखना मेरा धर्म है, ऐसा विचार कर अपने भावों की विशुद्धि के लिए 2. अपराधाक्षमा क्रोधः xxx