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खमासमण सूत्र
गुणवान व्यक्ति को पहचानने से उनके प्रति अहोभाव एवं आदरभाव प्रकट होता है । गुणवान के प्रति उत्पन्न हुआ यह आदर ही गुणों की प्राप्ति में विघ्नकारक कर्मों का नाश करता है एवं गुणप्राप्ति का कारण बनता है । इसीलिए क्षमादि गुणों को प्राप्त करने की इच्छावाले साधक को इस सूत्र द्वारा अत्यंत भावपूर्वक दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर एवं दोनों घुटने सिमहाकर-जमीन पर टिकाकर नमस्कार करना चाहिए ।
जैन शासन की मर्यादा है कि, प्रत्येक क्रिया गुरु का विनय करके, उनसे अनुज्ञा लेकर ही की जाती है । यह सूत्र गुणवान गुरु के प्रति विनय प्रदर्शित करने का उत्तम साधन होने से सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन आदि क्रियाओं में इस सूत्र का प्रचुर मात्रा में उपयोग होता है ।
अक्षर-२८
मूलसूत्र :
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए,
मत्थएण वंदामि । पद
संपदा अन्वय सहित संस्कृत छाया : खमासमणो ! वंदिउं इच्छामि क्षमाश्रमण ! वंदितुम् इच्छामि हे क्षमाश्रमण ! मैं वंदन करना चाहता हूँ । जावणिज्जाए निसीहिआए, यापनीयया नैषेधिक्या, यापनीया द्वारा एवं नैषधिकीपूर्वक मत्थएण वंदामि । मस्तकेन वन्दे । मस्तक द्वारा मैं वंदन करता हूँ ।