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सूत्र संवेदना
गावंता, गुण आवे निज अंग) गुणवान पुरुषों के गुण की स्तवना गुण प्राप्ति का कारण है । इसलिए उत्तम पुरुषों के गुणों की स्तवना आदि के लिए मुनि वचन प्रयोग करते हैं ।
२. भव्यात्मा को उपदेश देने के लिए : धर्म को प्राप्त करने की योग्यतावाली आत्मा का आगमन होने पर गुरु की आज्ञा से शास्त्र के जानकार मुनि उपदेश के कार्य में प्रवृत्त होते हैं ।
३. शास्त्र अध्ययन करने के लिए - मोक्षमार्ग की प्राप्ति के लिए, भावों शुभ में स्थिर रहने के लिए एवं आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने के लिए मुनि वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा एवं धर्मकथा स्वरूप स्वाध्याय में सतत प्रयत्न करते हैं ।
उपर्युक्त तीन कारण उपस्थित होने पर मुनि भाषा समिति के पूर्ण उपयोग पूर्वक (मुहपत्ति के उपयोग के साथ) बोलते हैं ।
३. एषणा समिति : ४२ दोषों से रहित शुद्ध आहार की खोज करनी, वह एषणा समिति है । मुनि अनाहारी भाव की तीव्र इच्छावाले होते हैं, फिर भी ६ कारण12 उपस्थित होने पर वे शुद्ध आहार के लिए यत्न करते हैं ।
१. वेदना - क्षुधा से हुई वेदना सहन न हो तब ।
२. वैयावच्च आहार किए बिना कमजोरी आने पर योग्य तरीके से वैयावच्च न हो तब ।
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३. ईर्यार्थ - नेत्र का तेज मंद होने पर ईर्यासमिति का पालन न हो सके तब।
४. संयमार्थ शरीर के सामर्थ्य के अभाव में संयम जीवन का पालन
बराबर न हो सके तृब ।
५. प्राणार्थ
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आहार
के बिना प्राण जाने की संभावना हो तब ।
12. वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए अ संजमट्ठाए । तह पाणवत्ति आए, छटुं पुण धम्मचिंताए ।
विंशतिविंशिका १३, गाथा १३