SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री पंचिदिय सूत्र उपर्युक्त चार प्रकार के क्रोध, मान, माया एवं लोभ स्वरूप कषायों में से गुरु भगवंत तीन प्रकार के क्रोधादि कषायों से सर्वथा मुक्त होते हैं एवं चौथे प्रकार के क्रोधादि कषाय से मुक्त होने का सतत पुरुषार्थ करते हैं, इसलिए उन्हें चार कषायों से मुक्त कहते हैं । ऐसे चार प्रकार के कषायों से मुक्त गुरु भगवंतों के गुणों को हमें इस पद द्वारा स्मृति में लाना है । इस पद का उच्चारण करते समय साधक सोचता है कि, 'जिन कषायों के बिना मैं एक क्षण भी नहीं रह पाता, उन्हीं कषायों को मेरे गुरु भगवंत कभी भी उदय में नहीं आने देते । कभी वे उदय में आ भी गए, तो वे संयमादि सद्गुणों का नाश नहीं कर पाते । ऐसे महात्माओं का आलंबन लेकर उन्हें अपना आदर्श बनाकर मैं भी अपने कषायों का नाश करने का यत्न करूँ ।' इअ अट्ठारस-गुणेहिं संजुत्तो : इस प्रकार अट्ठारह गुणों से युक्त (आचार्य भगवंत) हैं । पाँच इन्द्रियों के विकार शांत हुए हों, तो ही ब्रह्मचर्य का पालन सुविशुद्ध हो सकता है एवं जिन्हें विषयों के प्रति वैराग्य हो, उन्हें ही कषाय नहीं सताते । इस तरह क्रम में रखे गए ऐसे अट्ठारह गुणों से युक्त आचार्य भगवंत होते हैं । ये अट्ठारह गुण, दोष की निवृत्ति स्वरूप हैं, दोषों की निवृत्ति के साथसाथ गुणों की प्राप्ति भी आवश्यक है । इसलिए अब गुण में प्रवृत्ति रूप बाकी के १८ गुण दूसरी गाथा में बताए हैं । इन्द्रियों का नियमन करनेवाले, ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले एवं कषायों का त्याग करनेवाले, ऐसे १८ गुणों वाले महात्मा लौकिक दृष्टि से भी अच्छे गिने जाते हैं, जबकि दूसरी गाथा में जो अट्ठारह गुण बताए हैं, उन अट्ठारह गुणों से युक्त आत्मा ही लोकोत्तर दृष्टि से भी उत्तम हैं । पंच महव्वय-जुत्तो : गुरु भगवंत पाँच महाव्रतों से युक्त हैं । अणुव्रत
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy