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रहे । यही प्रीति पराक्रम की प्राप्ति करानेवाली बनकर अंत में 'परिणति' को पलटाए बिना नहीं रहती । ' सूत्र संवेदना' ऐसी फलश्रुति पैदा करने में खूब सफल सिद्ध बनें एवं इसमें पुण्यभागी विदुषी साध्वीजी श्री प्रशमिताश्रीजी सामायिक सूत्रों की तरह आवश्यक क्रिया के संपूर्ण सूत्रों पर की संवेदना को शब्द देह देने की कार्य-सिद्धि के शिखर पर शीघ्रताशीघ्र पहुँचे, ऐसी सर्वोत्तम कल्याण कामना ।
पालीताणा
आचार्य विजयपूर्णचन्द्रसूरि
सांचोरी जैन भवन,
ता. २१-१०-२००२,
आसो सुद पूर्णिमा, वि.सं. २०५८
पूज्य आचार्यश्री के आशीर्वचन से आज दो प्रतिक्रमण के सूत्रों पर की संवेदना को यत्किंचित् शब्ददेह देना मुमकिन हुआ है। पुनः पुनः ऐसे आशीर्वाद की अभिलाषा रहती है, जिससे पूज्यश्री द्वारा व्यक्त कल्याण कामना भी सिद्ध हो और हमारी क्रियाएँ जीवंत हो। सं.