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________________ रखना हो तो चुल्हे को गरम रखना जरूरी हो जाता है। मुश्किल से गरम हुआ पानी जैसे ही चुल्हे के संसर्ग से अलग होता है वैसे ही धीरे-धीरे पुनः शीतलता पाता जाता है। पानी को शीतल बनाने के लिए खास मेहनत नहीं करनी पड़ती, कारण कि शीतलता पानी का स्वभाव है। संक्षेप में, शीतलता पानी का स्वभाव होने से पानी बहुत दिनों तक शीतल रह सकता है। उष्णता पानी का विभाव होने से थोड़ी देर तक भी पानी को गरम रखना पड़े तो मेहनत करनी पड़ती है। ܕ क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय-दोष आत्मा के साथ विभाव रूप से अनादिकाल से जुड़े होने पर भी इन दोषों का सतत सेवन नहीं हो सकता । क्योंकि ये विभाव हैं। वैसे ही क्षमा, नम्रता, सरलता, संतोष ये गुण स्वभाव रूप होने से इन गुणों की उपासना बहुत समय तक हो सकती है, क्योंकि यह आत्मा का स्वभाव है। आत्म-स्वभाव ऐसा होने पर भी अनादि के कुसंस्कार आत्मा को बहुत बार परघर अर्थात् विभाव दशा में खींच ले जाते हैं। इस खिंचाई के वश न होना एवं घर के घर में आकर मध्यस्थ भाव में स्थिर हो जाने का पुरुषार्थ करना, यही तो सामायिक है, इसी का नाम तो प्रतिक्रमण है। आक्रमण एवं प्रतिक्रमण के बीच यही भेद है। प्रवाह में घसीटना, बहना आक्रमण है। इसमें जरा भी बल की आवश्यकता नहीं होती । कीडी जैसा जीव भी प्रवाह के साथ बह सकता है जब कि, विरुद्ध धारा में तैरने में तो पूरे पराक्रम की आवश्यकता रहती है। कुंजर जैसा जीव भी यदि पराक्रम का प्रयोग करे तो ही विरुद्ध धारा में तैर सकता है । इस अर्थ में सामायिक या प्रतिक्रमण आसान साधना नहीं मानी जाती, तो भी स्वभाव में रहनेवाली होने से ये साधना अशक्य भी नहीं मानी जाती । ' सूत्र संवेदना' का यदि बराबर अध्ययन - चिंतन-मनन हो, तो सामायिकप्रतिक्रमण जैसी स्वभावभूत साधना में विरुद्ध धारा में तैरने जैसा पराक्रम अपेक्षित है, वैसे पराक्रम पर कम से कम प्रीति की जागृति हुए बिना नहीं
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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