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________________ श्री पंचिदिय सूत्र माया करूँगा, तो उसे सच मनाने की चिंता में मैं कोई भी अनुष्ठान एकाग्रता से नहीं कर पाऊँगा । : • अगर मैं निर्दभ वृत्ति - निष्कपट सरल चिर्त को निष्पन्न करूँगा, तो मुझे यहीं पर चित्त की स्वस्थता कृत मोक्ष के सुख का अनुभव होगा । लोभ : पदार्थ को पाने की इच्छा, जीवन जरूरी वस्तुएँ प्राप्त होने पर भी अधिक अधिक पाने की इच्छा, असंतोष, सुंदर पदार्थ के उपभोग की इच्छा ऐसे भाव लोभ कषाय के कारण होते हैं । ‘इच्छा मात्र दुःख है । अनिच्छा ही मोक्ष है - सुख है ।' ऐसी समझवाले मुनि इच्छा के दुःख से मुक्त होने के लिए चिंतन करते हैं कि, • लोभ सर्व दोषों की खान है । सर्व आपत्तिओं का कारण है । सर्व गुणों का विनाशक है एवं सर्वार्थ का बाधक है । • लोभ रूपी इच्छाएँ मन में संताप उत्पन्न करती हैं । • प्रिय सुखों को भोगने की इच्छा मेरे मन को दुःखी करती हैं । इच्छा के अधीन बनकर मैं जिन जिन वस्तुओं या व्यक्तिओं का संग्रह करता हूँ, वे वास्तव में मुझे सुख तो नहीं देते, परंतु मेरे दुःख एवं क्लेश में वृद्धि ही करते हैं। • संयम के उपकरण भी मुझे सिर्फ संयम साधक होने के कारण ही रखने हैं, पर उन पर ममत्व नहीं करना है । • लोभ से मुक्त होने के लिए मुझे पर-पुद्गल की आसक्ति को तोड़कर आत्मिक आनंद का चिंतन करना चाहिए । । प्राप्त-अप्राप्त विषयों में मूर्छा-ममत्व-गृद्धि-गौरव या लगाव रखने से मेरी आत्मा को कर्मबंध होता है ।। पुद्गल की प्रीति ने बड़े बड़े मुनिवरों को भी दीन बनाया है। उनको भिखारी की तरह गृहस्थों के पास याचना करने के लिए मजबूर किया है ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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