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________________ श्री पंचिदिय सूत्र ६७ ३. निषद्या अनुप्रवेश - स्त्री के आसन, शयन पर दो घड़ी तक नहीं बैठना । ४. इन्द्रिय अप्रयोग - स्त्री के रूप, अंगोपांग नहीं देखना । ५. कुड्यंतर दांपत्य वर्जन - दीवार की दूसरी ओर स्त्री-पुरुष का युगल हो तो, वहाँ न रहना । ६. पूर्वक्रीडित अस्मृति - पूर्व की हुई क्रीड़ा का स्मरण नहीं करना । ७. प्रणीत अभोजन - मादक आहार का त्याग करना । ८. अति मात्रा अभोजन - प्रमाण से अधिक आहार नही करना । ९. विभूषा परिवर्जन - शरीर को सुशोभित नहीं करना । यह नौ बाड़ ब्रह्मचर्य के पालन में सहायक बनती हैं ।अगर इन बाड़ों का पालन न हो, तो निमित्त मिलने पर मन विकृत हो जाने की शक्यता बढ़ जाती है, इसलिए निर्मल ब्रह्मचर्य के पालन की इच्छा रखनेवाले साधु अवश्य इसका पालन करते हैं। ब्मचर्य विषयक जिज्ञासा : जिज्ञासा : वेद के उदय से जीव की अब्रह्म में प्रवृत्ति होती है तथा इस वेद का उदय तो मुनि को भी नौवें गुणस्थानक तक होता है, तो मुनि ब्रह्मचर्य का पालन किस तरह करते हैं ? ऐसे वेद के उदय को कैसे रोकना चाहिए ? तृप्ति : सबकी तरह मुनि को (गुरु भगवंत को) भी वेद का उदय नौ गुणस्थानक तक होता है । यह बात सत्य है; परन्तु जिसको वेद का उदय हो वह भोग में प्रवृत्ति करेगा ही, ऐसा नियम नहीं है । वेद के उदयकाल में विवेक विहीन असंयमी व्यक्ति भोग प्रवृत्ति करता है, परंतु विवेकी तो कर्म का उदय होने पर भी ऐसी तुच्छ प्रवृत्ति से बचने का प्रयास करता है । उसमें वह कुछ मात्रा में सफल भी होता है । इसीलिए परम विवेकी मुनि भगवंत वेद के उदयकाल में भी अखंड ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं ।
SR No.006124
Book TitleSutra Samvedana Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamitashreeji
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2012
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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