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और इसमें नीचे के चित्र को देखो। ऊपर ध्रुव तारा है तथा नीचे सूर्य के चारों और घूमती हुई पृथ्वी है। अब इस पर ध्यान दें। 23 डिसम्बर तथा 21 मार्च को ध्रुवतारा ठीक उत्तर दिशा में दिखाई देता है। जबकि 21 जून को पृथ्वी जहाँ होती है वहाँ से 22 डिसम्बर को 30 करोड़ किलोमीटर से अधिक दूर जा चुकी होती है।
चित्र को देखते हुए सरलता से समझा जा सकता है कि 21 जून को ध्रुवतारा पृथ्वी से बाँई ओर एवं 22 दिसम्बर को पृथ्वी 30 करोड किलोमीटर दूर जाने के कारण ध्रुव तारा पृथ्वी से दाहिनी ओर दिखाई देना चाहिए, यदि पृथ्वी घूमती हो तो।
किन्तु ध्रुवतारा तो अचल है। वह जरा भी इधर-उधर नहीं होता एवं हमेशा एक स्थान पर स्थित दिखता है। ध्रुव की कहानी में पिता के द्वारा कितनी ही कठिनाईयाँ पैदा की गई पर बालक ध्रुव तो अपने निश्चय पर अटल ही रहा, इसलिए तो ध्रुव की प्रतिज्ञा को 'ध्रुव' कहा जाता है।
समुद्र में नाविक भी ध्रुवतारे को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्य पर पहुँचते है। ध्रुवतारा बारहों महिने एक ही स्थान पर दिखाई देता है इससे कहा जा सकता है कि पृथ्वी घूमती नहीं है। इसके उत्तर में कोई यह कहे कि ध्रुव तारा पृथ्वी से काफी दूर करोड़ों-अबजों मील दूर है तो इसका प्रमाण भी होना चाहिए, वो तो है ही नहीं। वैज्ञानिक एडगले ने भूगोल-खगोल पर 50 वर्षों के कठिन प्रयास एवं खोजो के बाद कहा कि पृथ्वी थाली के आकार जैसी चपटी है जिस पर सूर्य एवं चन्द्रमा घूम रहे हैं। ध्रुवतारा पृथ्वी से 5,000 मील से ज्यादा दूर नहीं है तथा सूर्य का व्यास 10 मील है। अनेक वैज्ञानिक तथ्यों से पृथ्वी का घूमना प्रमाणित नहीं होता है। सुबह वृक्ष पर से पक्षी दाने के लिए पृथ्वी से उपर आकाश में उड जाते है तथा शाम को अपने घोंसले में वापस आ जाते हैं। वे यह गणना नहीं करते हैं कि प्रति घंटे 1,000 मील की गति से पृथ्वी के घूमने से मेरा घोंसला, मेरा वृक्ष कहाँ चला गया होगा? वे तो बहुत ही सामान्य रूप से अपने घर आकर किल्लोल करते हैं। यदि पृथ्वी घूमती होती तो क्या यह संभव था?
स्पष्ट, सरल एवं साधारण बुद्धि वाले भी समझ सकें ऐसे अनेक उदाहरणों से हम समझ गये कि पृथ्वी घूमती नहीं है। अब आइये आगे बढ़ते है।
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