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अ.) कर्म के भेद-प्रभेद की पहचान
(1) ज्ञानावरणीय कर्म यह आँख पर बंधी हुई पट्टी के समान है। जैसे आँख पर बंधी पट्टी के कारण हम कोई भी पदार्थ देख नहीं सकते, वैसा ही ज्ञानावरणीय कर्म के कारण आत्मा ज्ञेय पदार्थों को जान नहीं सकता। इसके पाँच भेद है:
(1) मतिज्ञानावरण (2) श्रुतज्ञानावरण (3) अवधिज्ञानावरण (4) मन:पर्यव ज्ञानावरण और (5) केवल ज्ञानावरण। उपरोक्त पाँच आवरण आत्मा के मति आदि पाँचों ज्ञानों को आच्छादित कर देते हैं।
मतिज्ञान : पाँच इन्द्रिय और मन से होने वाला ज्ञान श्रुतज्ञान शास्त्र उपदेश आदि से होने वाला शब्दानुसारी ज्ञान अवधिज्ञान : इन्द्रिय, मन और शास्त्राभ्यास के बिना ही होनेवाला रूपी द्रव्यों का प्रत्यक्ष
ज्ञान मन:पर्यवज्ञान :अढाई द्वीप समुद्र में रहे संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन का प्रत्यक्ष ज्ञान। प्रस्तुत
ज्ञान अप्रमत्त मुनि को ही प्राप्त होता है। केवल ज्ञान : सर्वकालिक समस्त द्रव्य एवं उसके सर्व पर्यायों का आत्मा को होने वाला
प्रत्यक्ष ज्ञान। मतिज्ञान में चार क्रमिक अवस्थाएँ हैं : अवग्रह, इहा, अपाय एवं धारणा। अवग्रह : प्राथमिक सामान्य ज्ञान, ईहा : उहापोह, अपाय : निर्णय,धारणा : धाराप्रवाह, संस्कार एवं स्मृति
(2) दर्शनावरणीय कर्म यह द्वारपाल के समान है। जिस तरह पहरेदार, इजाजत के बिना राजसभा में आनेवाले व्यक्ति को रोक देता है, ठीक वैसे ही दर्शनावरणीय कर्म के उदय से जीव सामान्य बोध भी प्राप्त नहीं कर सकता। दर्शनावरणीय कर्म के 9 प्रकार है। 4 दर्शनावरण + 5 निद्रा। दर्शनावरण के 4 भेद हैं। 1) चक्षुदर्शनावरण : वस्तु चक्षु से दृष्टि गोचर न हो। 2) अचक्षुदर्शनावरण : अन्य इन्द्रिय अथवा मन से वस्तु दृष्टिगोचर न हो 3) अवधि दर्शनावरण : अवधिदर्शन से होते रूपी द्रव्यों के सामान्य बोध का अवरोधक 4) केवल दर्शनावरण : केवलदर्शन से होते सर्व द्रव्यों के सामान्य बोध का अवरोधक निद्रा के भेद 5 हैं... (1) निद्रा : अल्पनिद्रा, जिसमें बिना कष्ट से जाग सके । (2) निद्रा-निद्र गाढ निद्रा,जिसमें से जागने में कष्ट होता है । (3) प्रचला बैठे अथवा खड़े-खड़े नींद लगने की अवस्था । (4) प्रचला-प्रचला चलते समय नींद आना ।
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