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________________ जीव का शुद्ध-अशुद्ध स्वरूपः मौलिक अनंत गुण, 8 कर्म बादल और प्रकटीत दोष विकार 5 से 8 अघाती कर्म 1से 4 अज्ञानता-मूर्खता / अंधत्व-मूकत्व पाती कम इन्द्रिय-खोड ज्ञानावरण कर्म का Th निद्रा-थीणद्धि उच्च कुल ( गोत्रका नीच कुल की | अनंत ज्ञान अनंत. मिथ्यात्व क्रोध अगुरू दर्शन गति-शरीर लघुता D) अविरतिमान holubina इन्द्रियादि वील दर्शन A. आठ कर्म 13. सम्यग् ज्ञान 13. सम्यग् जान समय यशःअपयश ) कषाय. माया) अरूपिता वीतरोगता चारित्र सौभाग्य (CED Sa),राग-द्वेष लोभ दौर्भाग्य-वर्णादि ( हास्य-रति-भय अनंत वीर्य आदि अव्याबाध जुगुप्सा-काम-अरति शोक मृत्यु जीवजा जन्म सुख वेदनीय कर्म all कृपणता-अलाभ ) दरिद्रता भोगोपभोग शाता-अशाता-सुख-दुःख दुर्बलता। GST में पराधीनता
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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