________________
प्रश्न: अरिहंत भगवान ने सिर्फ चार कर्मों का नाश किया है। वे अभी संसार में है। मोक्ष में नहीं गए है। जबकि सिद्धभगवंतों ने आठों कर्मों का नाश कर लिया है। मोक्ष में जा चुके है। तो फिर पहले सिद्ध भगवंतों को नमस्कार किया जाना चाहिए और बाद में अरिहंत भगवंत को। लेकिन ऐसा क्यों नहीं करते? उत्तर: सिद्ध भगवंतों की पहचान हमें अरिहंतों के उपदेश से ही जानने को मिलती है। अरिहंत ही तीर्थ की स्थापना करते हैं। उपदेश देकर अनेक जीवों को मोक्ष तक पहुँचाते है। इतना ही नहीं बल्कि सिद्धभगवंत भी अरिहंत के उपदेश से ही चारित्र स्वीकार करके कर्मरहित बनकर सिद्ध बनते है। इसलिए अरिहंत भगवंत को प्रथम नमस्कार होता है। वैसे अरिहंत परमात्मा का सबसे ज्यादा उपकार होने से उन्हें पहले नमस्कार किया जाता है। प्रश्न: अरिहंत भगवान की अनुपस्थिति में वर्तमान में अरिहंत भगवान का परिचय आचार्य, उपाध्याय या साधु कराते है। इस तरह अरिहंत से भी ज्यादा उपकारी तो साधु होने चाहिए तो फिर उपकारी की दृष्टि से तो अरिहंत से पहले साधु भगवंतों को नमस्कार क्यों नहीं किया जाता है। ? उत्तर: आचार्य आदि भी अरिहंत भगवान के उपदेश अनुसार ही उपदेश देते है। अपनी स्वतंत्रता से वे नहीं बोलते । वैसे आचार्य आदि के मूल में भी अरिहंत ही रहे हुए है। इसलिए पहले अरिहंतों को नमस्कार किया जाता है।
अरिहंत राजा समान है, और आचार्य आदि उनकी पर्षदा (सभा) समान है। राजा को नमस्कार करने के बाद ही सभी को नमस्कार होता है। इसलिए सभा समान आचार्य आदि को नमस्कार करने से पहले राजा समान अरिहंत को नमस्कार करना चहिए। प्रश्न: पंच परमेष्ठियों के कुल कितने गुण होते है ? उत्तर: अरिहंत भगवंत के 12 गुण, सिद्ध भगवंत के 8 गुण, आचार्य के 36 गुण, उपाध्याय के 25 गुण और साधुओं के 27 गुण। इस तरह कुल 108 गुण पंच परमेष्ठियों के होते है।
बार गुण अरिहंत देव, प्रणमीजे भावे, सिद्ध आठ गुण समरता, दु:ख दोहग जावे.. 1
आचारज गुण छत्रीस, पचवीस उवज्झाय सत्तावीस गुण साधुना, जपतां शिवसुख थाय.. 2
अष्टोत्तर शत गुण मलीए, एम समरो नवकार, धीर विमल पंडित तणो, नय प्रणमे नित सार.. 3
35