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________________ छोटी सी बालिका... * ज्ञान पूजन की विधि * जिसे ज्ञान न चढता हो उसे और अन्य को भी प्रतिदिन धार्मिक पुस्तक अथवा शास्त्र-ग्रंथ की वासक्षेप से ज्ञान पूजा करनी चाहिए। ज्ञानपूजा दो प्रकार की होती है- द्रव्य से और भाव से।। ज्ञानपूजन करती हुई द्रव्य से ज्ञान पूजा:- शास्त्र-ग्रंथ की फल-नैवेद्य-स्वर्ण मुद्रा, चाँदी का सिक्का, रुपया-पैसा रखकर वासक्षेप से पूजा करना द्रव्य ज्ञानपूजा कहलाती है। हमें ज्ञान पूजन करना है, धन पूजन नहीं करना हैं, अत: पोथी या पुस्तक पर अपने दाहिने हाथ से वासक्षेप रखें, परन्तु रुपये पैसों पर वासक्षेप न रखें। उस पर रखने से धन का पूजन हो जाता है। अत: पैसे आदि थाली में रखें। गुरु भगवंत का संयोग हो तो उनके पास जाकर ज्ञान पूजन करें, अन्यथा पाठशाला आदि में ही ज्ञान पूजन हो सकता है। यह द्रव्य से ज्ञान पूजा हुई। भाव से ज्ञान पूजा:- दो हाथ जोडकर, मस्तक झुकाकर, नमो नाणस्स बोलकर ग्रंथ वाली पोथी या पुस्तक को नमस्कार करने से ज्ञान की भावपूजा होती है। ज्ञानपंचमी के दिना नाण (ज्ञान) के समक्ष प्रणाम, स्तुति, देववंदन, खमासमण, काउस्सग्ग, नवकारवाली आदि क्रियाएँ करें। वह भी ज्ञान की भाव पूजा है। वासक्षेप डालना:- इस प्रकार ज्ञान की द्रव्य-भाव पूजा करके गुरु कृपा से अपना अज्ञान दूर हो और संसार रूपी सागर से पार उतरने के लिये गुरू महाराज के पास, वासक्षेप डलवाएँ। पाँच महाव्रत के धारक, आजीवन सामायिक वाले, जिनवाणी का श्रवण करवाने वाले गुरु म. अपने परम उपकारी है। अत: उनका विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। गुरू पूजन करने के लिये पैसों आदि का गुरू के अंग से स्पर्श न करें, परंत उनके पाँव के पास रखकर उनके अंगठे पर अपने दाहिने हाथ से वासक्षेप लेकर पूजन करें। पैसों पर वासक्षेप न रखें। गुरु भगवंत पर पूज्य भाव रखें। उनके पूजन से अपने चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय होता है, चारित्र उदय में आता है। बासक्षेप डलवाती पाठशाला से पढकर घर लौटने के बाद रात्रि में माता-पिता हुई बालिका... आदि अग्रजों (वडिलों) की सेवा करें। उनकी सेवा से हमें उनके आशीर्वाद प्राप्त होते है। महात्मा मनु ने भी कहा है कि माता की भक्ति से इस लोक का सुख प्राप्त होता है, पिता की भक्ति से परलोक का सुख प्राप्त होता है और गुरू की भक्ति से ब्रह्मलोक का सुख मिलता है। जो इन तीन का आदर करता है, वह धर्म का आदर करता है, इससे विपरी जो इन तीन का अनादर करता है, उसकी सभी क्रियाएँ निष्फल जाती है। गुरु के पास 27
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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