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5. नवपद
____A. नमस्कार महामंत्र प्र. सिद्ध भगवंत किसे कहते है ? | उ : चार घाती और चार अघाती कर्म - इस प्रकार कुल आठों कर्मों का जिन्होंने संपूर्ण नाश किया हो, राग-द्वेष, विषय-कषाय आदि दोषों से जो सदा मुक्त बन गए हो, जन्म-जीवन-मृत्यु रुपी जंजाल से जो मुक्त हो गए हो, जिन्हें अब किसी प्रकार के दुःख का सामना न करना पड़े, जिन्होंने अपनी आत्मा का शुद्ध स्वरुप प्रगट कर लिया हो, सिद्धशिला (मोक्ष) पर विराजमान होकर जो सदा आत्मरमणता में लीन हो, जिन्होंने वीतराग दशा और केवलज्ञान प्राप्त कर लिया हो उन्हें सिद्ध भगवंत कहते है। सिद्ध भगवंत अनंत गुणों से युक्त होते है लेकिन उनके आठ गुण मुख्य रुप से प्रचलित है। प्र : सिद्ध भगवंतों के आठ गुण कौन-कौन से ? उ : आठ कर्मों का नाश करने पर उन्हें आठ गुण प्राप्त होते है
1. ज्ञानावरणीय कर्म के नाश से - अनंतज्ञान 2. दर्शनावरणीय कर्म के नाश से - अनंतदर्शन 3. वेदनीय कर्म के नाश से - अव्याबाध सुख 4. मोहनीय कर्म के नाश से - वीतरागता 5. आयुष्य कर्म के नाश से - अक्षयस्थिति 6. नामकर्म के नाश से - अरुपीत्व 7. गोत्रकर्म के नाश से - अगुरुलघु
8. अंतराय कर्म के नाश से - अनंतवीर्य प्र : अरिहंत भगवान और सिद्ध भगवान में क्या भेद है ? उ : 1. अरिहंत भगवान ने मात्र चार घाती कर्मों का ही नाश किया होता है जब कि सिद्ध भगवान ने आठों कर्मों का नाश किया होता है।
2. अरिहंत भगवान इस विश्व के जीवों को आत्मकल्याण का उपदेश देते हुए विचरण करते है जबकि सिद्ध भगवंत मोक्ष में विराजमान होते है। 3. अरिहंत भगवान के 12 विशिष्ट गुण होते है जब कि सिद्ध भगवान के 8 विशिष्ठ गुण होते है। 4. सिद्ध भगवान बिना शरीर के होते है। 5. अरिहंत भगवान आयुष्य पूर्ण करके सिद्ध बनते है लेकिन सभी सिद्ध पूर्व में अरिहंत हो – ऐसा जरुरी नहीं, वे सामान्य केवलज्ञानी महात्मा भी हो सकते है।
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