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2. गाथा लेने के पश्चात् एक बार पुन: वह गाथा शुद्ध रुप से देने वाले को सुनाएँ तथा स्वयं पाँच बार
देखकर बोलें। 3. जितनी शक्ति हो उतना पक्का याद करने के पश्चात् ही दूसरा रटें। एक पंक्ति रटने के बाद दूसरी
पंक्ति पक्की करें। 4. पुन: पहली+ दूसरी पंक्ति बोलें और तत्पश्चात् तीसरी पंक्ति पक्की हो जाने के बाद दूसरी + तीसरी
पंक्ति बोलें, फिर चौथी पंक्ति पक्की करके प्रथम से चौथी पंक्ति तक एक साथ पुन: बोलें। इस प्रकार
चार पंक्तियों की गाथा पक्की करें। 5. पिछले सूत्र या पिछली गाथाएँ विस्मृत हो गई हो तो उन्हें पक्की करके फिर नया सूत्र रटें, क्योंकि सूत्र
पाठ शुद्ध और पक्का पढने से अनेक पाप कर्म नष्ट होते हैं, पुण्य बँधता है और अशुद्ध पढने व पढा हुआ
भूल जाने से दोष लगता है, अत: सूत्र शुद्ध व दृढ पढने का आग्रह रखें। 6. गुटखा-चाय आदि व्यसन मन की चंचलता बढाते है, अपनी स्मरणशक्ति और समझ शक्ति को
घटाते है अत: इनका त्याग करें। 7. जैन धार्मिक सूत्र देवाधिष्ठित, मंत्रगर्भित और शुभ भाव युक्त है। अत: सूत्र शुद्ध बोलने से प्रबल पुण्य बंध होता है, पाप निर्बल बनता है, मोक्ष सुलभ बनता है। सूत्रों के अर्थ सीखकर उन पर मनन करने से अनेक पाप कर्मों का नाश होता है।
प्यारे बच्चों ! ध्यान रहे कि तनिक भी अशुद्ध गाथा न रखें, रटा हुआ न भूलें, सूत्रो का अर्थ किया जाए तो मोक्ष की प्राप्ति शीघ्र हो सकती हैं, अत: शुद्ध पढ़ें। पाठशाला के शिक्षकों के लिये ध्यान योग्य बातें:- पाठशाला के शिक्षक भी पढाने में विशेष ध्यान रखे कि सूत्र कंठस्थ करवाने के साथ उनके अर्थ भी समझाएँ। अमुक क्रियाओं का विधिज्ञान, स्तवन, स्तुति, स्तुतिओं के जोडे आदि भी कंठस्थ करवाएँ, वरना दो प्रतिक्रमण कंठस्थ हो जाने पर भी बालकों को चैत्यवंदन की विधि भी नहीं आती।
सूत्रों का पुनरावर्तन करवाते रहें।
रविवार को सामायिक और सप्ताह अथवा 15 दिनों में एक बार तो पाठशाला के सभी बच्चों को प्रतिक्रमण करवाने का आयोजन रखें, जिससे क्रिया में रुचि पैदा हो।
सम्यग्ज्ञान वो फूल है, वो फूल जिसको न लेना भूल है, __ भूल में जो मशगूल है, उसका जीवन धूल है, जो ज्ञान प्राप्ति में मशगूल है, उसका जीवन अमूल है, जिसका ज्ञान अतुल है, उसके कर्म होते निर्मूल है।
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