SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जिस त्रिक अथवा उसका पेटा भेद है, वहाँ यथाक्रम बताया जायेगा। प्रश्न: दश त्रिक का पालन मंदिर में किस क्रम में करना चाहिये। उत्तर: * सर्वप्रथम पहली निसीही बोलकर प्रवेश करें। (1/1) * प्रभु का मुख देखते ही अंजलिबद्ध प्रणाम कर 'नमो जिणाणं' बोलें (3/1) * तत्पश्चात् तीन प्रदक्षिणा। (2-3) * उसके बाद अर्धावनत प्रणाम कर स्तुति बोलें। (3/2) * फिर जयणापूर्वक पूजा की सामग्री तैयार करें। * बाद में गंभारे में प्रवेश करते समय दूसरी निसीही बोलें।(1/2) * फिर गंभारे में प्रभु की अंगपूजा करें।(4/1) * तत्पश्चात् बाहर आकर अग्रपूजा-धूप, दीप तथा चामर, दर्पण, पंखा वगेरे करें।(4/2) * फिर अक्षत्, नैवेद्य तथा फल पूजा करें। (4/2) * उसके बाद तीसरी निसिहि करें।(1/3) * फिर तीन प्रमार्जना करें। (7-3) तत्पश्चात् त्रिदिशिवर्जन त्रिक (6-3)। पंचाग प्रणिपात प्रणाम करें (3/3), भाव पूजा (चैत्यवंदन) करें (4/3), प्रणिधान त्रिक (10-3), आलम्बन त्रिक (8-3) तथा मुद्रात्रिक (9-3) का उपयोग रखते हुए चैत्यवंदन करें। अंत में अवस्था त्रिक का ध्यान करें। (5-3) नोट : जो प्रथम नंबर दिये गये है, वे दशत्रिक के मूल भेद के हैं। दूसरे नंबर पेटा भेद के हैं जहाँ '-' करके तीन नंबर दिये हैं वहाँ तीनों भेद समझना। अंत में घर जाते समय हर्ष का अतिरेक प्रदर्शित करने हेतु घंट नाद करें अंगपूजा के दौरान स्नात्रपूजा वगैरे पढा सकते हैं। प्रश्न:पाँच अभिगम (विनय) समझाओ? उत्तर:1.सचित्त का त्याग :- . यहाँ सचित्त के उपलक्षण से खाने-पीने एवं अपने उपयोग करने की समग्र सामग्री का त्याग करके मंदिर जाना। यानि जेब में दवा, मुखवास, मावा, मसाला, सिगरेट, छींकणी, सेंट वगैरे पास में कुछ भी नहीं होना चाहिये। भूल से रह गयी हो तो उसका उपयोग नहीं करके पुजारी को दे देना अथवा बाहर मिट्टी में मिला देना। तथा बूट-चप्पल वगैरे भी पहनकर नहीं जा सकते हैं। 2. अचित्त का अत्याग : जैसे मंदिर जाते समय अपने उपयोग की वस्तु का त्याग करने का है, उसी प्रकार प्रभु भक्ति के लिये धूप-दीप, अक्षत, नैवेद्य, वगैरे सामग्री लेकर जाना चाहिये। यहाँ अचित्त के उपलक्षण से प्रभु की पूजा योग्य सर्व सामग्री समझना, देवदर्शन में खाली हाथ नहीं जाना, कुछ नहीं तो भंडार में पुरने के लिये पैसा तो लेकर ही जाना चाहिये। - 16
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy