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3. उत्तरासन :
पुरुषों को मंदिर में प्रवेश करते समय कंधे के ऊपर खेस डालना एवं स्त्रियों को सिरपर ओढना चाहिये।
4. अंजलि :
दूर से शिखर या ध्वजा दिखे तब एवं मंदिर में प्रवेश करते समय सर्व प्रथम प्रभु नजर में आये तब दो हाथ जोड़कर मस्तक झुकाना । यदि सामग्री हाथ में हो तो मात्र मस्तक झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहना चाहिये ।
5. प्रणिधान :
प्रभु को देखते ही सारी दुनिया भूलकर उनमें एकाग्र बन जाना। आत्म प्रदेशों के कोनेकोने में प्रभु का वास हो जाना चाहिये ।
प्रश्न: पूजा के लिये कितने प्रकार की शुद्धि रखनी आवश्यक है।
उत्तर: सात प्रकर की।
1. अंग शुद्धि : जीव रहित भूमि पर परात में स्नानकर पानी को सूखी जगह अथवा छत पर जयणा से परठना।
2. वस्त्र शुद्धि : अबोट वस्त्र पहनना । पूजा के वस्त्र किसी अन्य कार्य में उपयोग में नहीं लेंवे। 3. मन शुद्धि: मन को प्रभु के गुणों के स्मरण में लीन रखना ।
4. भूमि शुद्धि : जिस जगह द्रव्य और भाव पूजा करनी है वह भूमि हाड़, मांस, बाल, नाखून आदि से रहित शुद्ध होनी चाहिये ।
5. उपकरण शुद्धि : थाली, कटोरी, डब्बी, फूलदानी, कलश, अंगलूछणा, वगैरह उपकरण को धुपाना एवं शक्ति के अनुसार उत्तम स्व- द्रव्य एवं स्व-उपकरण से पूजा करनी चाहिये।
6. द्रव्य शुद्धि : कुएँ का अथवा शुद्ध नक्षत्र का पानी, गाय का दूध, घी, उत्तम सुगंधिदार धूप, बासमती चावल, शुद्ध घी का नैवेद्य एवं उत्तम जाति के फल आदि उत्तमोत्तम द्रव्य से प्रभु पूजा करनी चाहिये। द्रव्य जितना उत्तम होता है, उतने भावों की वृद्धि होने से फल भी उतना ही उत्तम मिलता है।
7. विधि शुद्धि: सारी क्रिया जयणा, उपयोगपूर्वक एवं विधि अनुसार करनी चाहिये । प्रश्न: प्रभु की पूजा कब और कैसे करनी चाहिये ? उसका फल क्या है? उत्तर: प्रभु की त्रिकाल पूजा करनी चाहिये।
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1. प्रात: 2. मध्याह्न 3. संध्या में
सूर्योदय के बाद वासक्षेप पूजा-पूरे दिन के दुःख को दूर करती है। : अष्टप्रकारी पूजा - पूरे जन्म के पापो का नाश करती है।
: आरती, मंगल दीपक - सात भव के पाप नाश करती है।
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