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________________ रात्रिभोजन का त्याग किया है, परंतु तुम दोनों नहीं खाते अत: तुम्हारी माता भी भोजन ग्रहण नहीं करती। उसे भी आज छठा उपवास है। तुम्हारी छोटी बहन ने भी खाना-पीना छोड दिया है, इन सभी पर तुम्हें दया आनी चाहिए और उनके खातिर भी तुम्हें रात्रिभोजन करना चाहिये। तुम्हारी छोटी बहन भोजन के अभाव से ग्लानि महसूस करती है। तुम्हारी माता को पूछने पर मुझे यह सब पता चला। मैं तो अंधकार में ही था। तुम समझदार और सयाने हो अत: तुम्हे समझना चाहिए। दूसरी बात यह है कि पंडित पुरुष रात्रि के प्रथम अर्ध प्रहर को प्रदोष कहते हैं, और अंतिम अर्ध प्रहर को प्रत्यूष कहते हैं। अत: इस समय में भोजन करना बाधा नहीं है। तुम्हें निशाभोजन का दोष नहीं लगेगा और माता-पिता की आज्ञा का पालन हो जाएगा, साथ ही तुम्हारे नियम का भी संरक्षण हो जाएगा, अत: वत्स ! विलम्ब न करो और शीघ्र भोजन कर लो। यह बात सुनकर भूख से अधिक विह्वल बना हुआ हंस केशव की ओर देखने लगा, अपने बड़े भाई हंस को ढीला देखकर केशव ने पिता से कहा पिताजी ! आपको जो ईष्ट, सुखदायक एवं अनुकूल हो वह मैं करने के लिये तैयार हूँ परंतु जो वस्तु पाप रूप हो वह आपके लिये सुखदायक कैसे हो सकती है? फिर आपने रात्रि के प्रथम अर्ध प्रहर को प्रदोष और अंत्य अर्ध प्रहर को प्रत्यूष कहकर रात्रि भोजन का दोष नहीं लगता, ऐसा जो कहा है, वह उपयुक्त नहीं है। तत्त्व से तो सूर्यास्त से पूर्व दो घड़ियों का भी वर्जन होना चाहिए, अत: बुद्धिमान मानवों को उस समय भोजन का त्याग करना चाहिए और अभी तो रात्रि ही है, अत: मैं आहार कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? ऐसा करने पर मेरी प्रतिज्ञा भंग होती है, अत: आप मुझे रात्रि भोजन करने का बार बार आग्रह न करने की कृपा करें। इस प्रकार केशव के वचन सुनते ही उसके पिता यशोधन भयंकर आवेश में आ गए और केशव को न कहने योग्य शब्द सुना दिया कि अरे दुर्विनीत! तू मेरी आज्ञा का उल्लंघन करता है। निकल जा मेरे घर से ! तेरा चेहरा भी मुझे मत बताना। पिता के आक्रोश भरे वचन सुनते ही धैर्य धारण करके केशव तत्क्षण घर में से बाहर निकल पड़ा। हंस भी उसका अनुगमन करने लगा, उस समय उसके पिता ने उसे एकदम पकड लिया और मधुर शब्दों से उसे अपने वश मे कर लिया तथा पिता के कहने से हंस ने उस समय रात में भोजन कर लिया। केशव ने घर से बाहर निकल कर सातवें दिन भयंकर अटवी में प्रवेश किया। आज उसका सातवाँ उपवास था। जब रात हुई तब उसने अनेक यात्रियों से भरपूर एक यक्ष मंदिर को देखा। वहाँ कई यात्री रसोई बना रहे थे। इन सभी यात्रियों ने केशव को देखा और कहा हे मुसाफिर ! पधारो ! पधारो ! हमारा स्थान पावन करो, भोजन का लाभ देकर हमें पुण्य के भागी बनाओ, आज हमारे लिये वास्तव में सुनहरा दिन है। केशव ने कहा: महानुभाव ! रात्रिभोजन करना घोर पाप है, अत: मैं भोजन नहीं करूंगा। उपवास व्रत में रात्रि में पारणा हो ही नहीं सकता। वह सच्चा उपवास नहीं गिना जा सकता। उपवास व्रत के अर्थ को अभी आप लोग नहीं समझते। धर्म शास्त्र का आदेश है कि आठ प्रहर तक भोजन का त्याग करने का नाम उपवास है। धर्म और शास्त्र के विरुद्ध जो तप करते है, वे तो दुर्गति के भागी बनते है। 111
SR No.006119
Book TitleJain Tattva Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Jain Mandal Chennai
PublisherVardhaman Jain Mandal Chennai
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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