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[ २८ ] हता रूप भूषण छे, परन्तु गृहस्थने तो ते दूषण रूप छे. गृहस्थाने जे अवनति रूप छे ते साधुओने उन्नति रूप छे. माटे साधुओए गृहस्थना रस्ताथी दूर रहेवुं सर्वथा उचित छे. उपर कहेली बीनाने पाळनार जैन संवेगी साधु सिवाय बीजा भाग्येज जोवामां आवे छे. जैन संवेगी साधु तो गाडी एक्कामां कदापि बेसता नथी, एटलुंज नहिं परन्तु रेलनो पण स्पर्श करता नथी. पोता पासे जे कपडा अगर काष्ठमय अथवा तुम्बपात्र तथा वांचवाना पुस्तको होय ते स्वशरीर पर राखी पगरस्ते भूपीठ उपर आ गामथी बीजे गम जायछे. वर्षा ऋतुमा चारमास सुधी एक स्थळे रहेछे. आठमास सुधी पर्यटन करेछे. भिक्षा मांगी आहार लेछे. सूर्योदयथी सूर्यास्त सुधीमां कार्यप्रसंगे स्वस्थान छोडी बहार नीकळेछे. रात्रिए बहार जता नथी. पैसानो स्पर्श करता नथी. तथा स्त्री, पशु, नपुंसक रहित स्थानमां वसेछे. स्त्रीना सहज स्पर्शने प्रायचित्तनुं कारण मानेछे. परोपकार करवामां हमेशां तैयार रहेछे. अप्रिय वचन बोलता नथी. रागद्वेष थाय वा प्रसंगनो त्याग करेछे. शत्रु अने मित्र पर समभाव राखेछ उपदेश शांत रीते आपेछे. परनिन्दा थाय तेवा तचन बोलता नथी. जे जे चीज पोतानी पासे राखेछे ते फक्त अहिंसाधर्मना पालन माटे,