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________________ [ २२ ] कोण हेतुथी आवे ? तेना उत्तरमां समजवून लोक ऋद्धि देखी देवत्वादिक सुखना अभिलाषथी तेओ इव्य चारित्र खीकारे छे. तेने पौद्गलिक सुखने माटे पालेछे. अने पाळीने देवलोकमां नवमा प्रैवेयक सुधी जइ शके छे. परन्तु आत्मीय कल्याणनो अभिलाष नहिं होवाथी अभव्य जीव अपूर्वकरणरूप विशुद्ध अध्यवसायनो भागी थतो नी, ज्यारे भव्य जीव आगळ वधी अपूर्वकरणरूप रद्ध परिणामनो भागी थायछे. वळी ज्यारे जीव अपूर्वक रणरूप परशु वडे रागद्वेषनी मजबूत गांठने तोडी आगळ वधी अनिवृत्तिकरण रूप विशुद्धतर आत्मानो शुभ अध्यवसाय प्राप्त करेछे. ते वारे केटलाएक आचार्योना मत प्रमाणे औपशमिक सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय छे, ज्यारे केटलाक अन्य पूज्यवरोना आशय प्रमाणे क्षयोपशम सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय छे त्यार बार बे घडीना प्रमाण वाळु अन्तरकरण करेछे. आ अंतरकरण पग आत्मपरिणाम विशेष छे. आ अन्तरकरण वडे करीने मोहनी' कर्मनो मुख्य भेद मिथ्यात्व के जेनी स्थिति सीतेर कोडाकोडि सागरोपमनी हती ते खपावीने एक कोडाकोडि सागरोपममा पल्योपमनो असंख्यातमो भाग जे बाकी रह्यो छे, तेमाथी पण ओछी करी मिथ्यात्वना पुद्गलोने शुद्ध करेछे. अने सम्यक्त्व रत्नने.
SR No.006110
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherShah Harakchand Bhurabhai
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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