SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२१] पमनी उत्कृष्ट स्थितेि जाणवी ) एटले के ते साते कर्मोंनी स्थिति एक कोडाकोडा सागरोपमथी कांइक न्यून ते वखते रहेछे, आ ( यथा प्रवृत्तिकरणरूप ) परिणामवाळो जीव संख्यात अथवा असंख्यात काळ सुधी रहेछे. आ परिणामवाळा जीव राग द्वेष रूप निबिड गांठनी पास आवेला छे. एम तत्त्वदर्शी जनो निरूपण करे छे. हवे आ स्थळेथी भव्य जीवो आत्मोन्नतिना मार्गमां आगळ वर्धछे, त्यारे अभव्यो त्यांथी पाछा हठेछे. उदाहरण तरीके लाएक पुरुषो ग्रामान्तर जता हता. तेमांथी एक बीकण चोर जोइ त पाछो नाठो, बीजो त्यांज उभो रहयो, त्रीजो आत्मशक्तिने आगळ करी चोरनो पराजय करी ईप्सित नगरमां पहोंच्यो. तेङ प्रमाणे आ रागद्वेषनी ग्रन्थि (गांठ) रूप दे - शनी पास आवेला जीवोमांथी केटलाएक रागद्वेषरूप महाचोरना डरथी पाछा हठेछे. केटलाक अमुक काळपर्यन्त त्यांज रहेछे, एटले के यथाप्रवृत्तिपरिणाममां रहेछे, ज्यारे केटलाएक रागद्वेपने जीती अपूर्वकरणपरिणाम के जे परिणाम कोई दिवस थयेल नथी ते करी आगळ वधी ज्यां शुद्धपरिणामरूप अनेक मंदिरोनी श्रेणी रहेली छे, तेवा सम्यक्त्व शहरमां पहोंची अमूल्य चारित्र रत्ननो संग्रह करेछे. अहीं कोई शंका करशे के अभव्यो यथाप्रवृत्तिकरणरूप परिणाममां
SR No.006110
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherShah Harakchand Bhurabhai
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy