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________________ [ २० ] मां पड़शे , तेवा रंग ढंग वाळो मालूम पडली. आस्तिकोनी संगतथी आस्तिक गुणवाळो जणाशे , नास्तिकोनी सोबतथी नास्तिक बनशे , जडवादि पुरुषोना सहवासर्थ' जडवाद स्वीकारशे , तेमज स्त्री , धन, पुत्रादिना संसर्गमां दधीन मालूम पडशे, गुरु आदिना परिचयमां आववाथी तेको बुद्धिवाळो भासशे... आ वात अनुभवसिद्ध छे. तेनो यथास्थित विचार करवो, तेनु नाम स्वपरनो विवेक कहेवामां आवेछे , तथा तेवाज विवेकने श्रद्धा अथवा तत्त्वरुचि किंवा सम्यक्त्व एवा नामथी शास्त्रकारो पोकारेछे. ते उपदेशथी थवावालुं सम्यक्त्व अधिगम समकित समजवू. स्वाभाविक सम्यक्त्व जीवने केवी रीते मळेछे. तेनुं टुंक वृत्तान्त अहीआं प्रकाशवानां आवे तो अयोग्य नही गणाय. समस्त जीवो यथाप्रवत्तिकरण रूप एक परिणाम विशेषना अधिकारी छे. आ यथाप्रवृत्तिकरण समये जीव आयुकर्म सिवाय बाकीना मात कर्मोनी दीर्घ स्थितिनो क्षय करी लघुस्थिति करेछे. (जे म एक जीवपरत्वे मोहनीय कर्मनी उत्कृष्ट स्थिति सित्तेर काडाकोडी सागरोपमनी छे. ज्ञानावरणीय, दर्शनावणीय , वेदनीय , तथा अंतराय कर्मनी उत्कृष्ट त्रीश कोडाकोडी सागरोपमनी स्थिति छे, नामकर्म तथा गोत्रकर्मनी वशि कोडाकोडी सागरो
SR No.006110
Book TitleAtmonnati Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherShah Harakchand Bhurabhai
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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