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[ २३ ] जीव संपादन करे छे. सम्यक्त्वनी प्राप्ति वखते जीव अवर्णनीय आनन्द पामे छे. जेम कोई सुभट दुर्जय शत्रुने जीती आनन्दित थाय छे, जेम कोई माणस भयङ्कर अटवीमां तृषातुर थयो होय तेने शीतल चन्दन वृक्षनी स्निग्ध छाया तळे बेसाडा अमृतनुं पान कराववामां आवे ते वखते तेने जेवो आनन्ः थाय तेथी विशेष आनन्द सम्यक्त्ववाला जीवने थाय छे. आवी रीते जीव सम्यक्त्व पामे छे. तेनुं नाम निसर्गसमरित कहेवाय छे. सम्यक्त्व उपर कह्या मुजब बे प्रकारनां छे, अधिगम समकित अने निसर्ग समकित. बन्ने प्रकारनां सम्यक् व मिथ्यात्वभाव दूर थवाथी थाय छे. जेम कोई पुरुष मार्ग मूकी उन्मार्ग पर गयो छे ते कांइ तो भमतो भमतो पोतानी पळे मार्ग उपर आवे छे, अथवा तो कोईने बीजो माणस मार्ग उपर लावे छे. वळी जेम कोद्रव नामनुं धान्य घणा का ळे खयमेव फोतरां विनानुं थाय छे, अने केटलाकने छाण विगेरेना प्रयोगथी फोतरा विनानुं करवामां आवे छे. फटलाएकने ताव औषध विना शान्त थाय छे, ज्यारे केटलाकने औषधथी शान्त करवो पडेछे. तेज प्रमाणे केटलाएकने स्वभावथी समकित थायछे ते निसर्ग समकित अने चाजाना उपदेशथी थाय ते अधिगम सम्य