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440 વ્યાખ્યાન સાહિત્યસંગ્રહ-ભાગ ૨ જે. त्कार करानेकी चेष्टा की गई है । ग्रंथमें ६ परिच्छेद हैं । उनमें जैनधर्मसे संबंध रखनेवाले विविध विषयोंका विवेचन है । सैकड़ो प्राचीन ग्रंथोंसे सुन्दर सुन्दर पद्यात्मक उक्तियां उद्धृत करके विषय विवेचना की गई है । मूल श्लोक संस्कृत में देकर, उनके नीचे उनका अर्थ, भावार्थ और भाष्यआदि गुजराती भाषामें लिखा गया है । उद्धृत श्लोक जैनों और हिन्दुओं, दोनोंके ग्रंथोंके हैं । संग्रह योग्यतापूर्वक किया गया है । धर्म, आचार, व्यवहार, शिक्षा, सत्य, असत्य, सुजन, दुर्जन, गुण, दोष-आदि सैंकड़ो विषयोंपर बड़ेही सुन्दर सुन्दर श्लोक दिए गए हैं। व्याख्यान देनेवालेके लिए बहुत अच्छा साहित्य इसमें है । ग्रंथ उत्तम है । छपाभी अच्छा है । गुजराती और संस्कृत जाननेवाले सषी लोगोंके कामका है।
"सरस्वती"-भाग १७, खंड १, संख्या ६-पूर्ण संख्या १९८-जून १९१६,
__ (प्रयाग).
व्याख्यानसाहित्यसंग्रह-भा० १, संशोधक मुनिराज श्रीविनयविजयजी. विद्वान् कर्ताना शब्दोमांन कहिए तो भिन्न भिन्न प्रकारनां पुराणो तथा काव्यादिनी पंक्तियोमांथी भिन्न भिन्न भारतादि इतिहास वगेरेमाथी भिन्न भिन्न शास्त्रो, कथाओ, प्रबंधो अने महान् साहित्यना भंडारोमाथी संग्रह करी आ ग्रंथ गुंथायो छे. बहु श्रमर्नु परिणाम. छे अने व्याख्यानकारने खास करीने धार्मिक भाषणकर्त्ताने घणो कीमती थई पडे तेम छे.
संपादक " साहित्य," पुस्तक ४-अंक ६-जुन १९१६,
___ वडोदरा.
વ્યાખ્યાન સાહિત્યસંગ્રહકર્તા મુનિરાજ શ્રીવિનયવિજયજી,
આ ગ્રંથમાં તેના કર્તાએ ખરેખર અથાગ પરિશ્રમ લીધો છે એમ કહ્યા. વગર ચાલી શકે તેમ નથી સાહિત્યપ્રેમી જનો માટે ગ્રંથ સંગ્રહ કરવા લાયક છે. આવા ગ્રંથે દરેક લાઈબ્રેરીએ અવશ્ય મંજુર કરવા જોઈએ, જેન તેમજ જૈનેતર દરેક ધર્માવલંબીઓને તેમાંથી ઘણુંજ શિખવાનું મળી શકે તેમ છે વક્તાઓને તો સિનેરી જેવો